गुरुदेव के बहुत समझाने पर भी वो नहीं रुका। तो उन्होंने उसे एक चिट्ठी लिख कर दी। और कहा कि रास्ते में मेरे एक भक्त को देते जाना। वह चिट्ठी लेकर भक्त के पास गया। उस चिट्ठी में लिखा था कि जैसे ही मेरा यह भक्त तुम्हें ये खत दे तुम इसको 6 महीने के लिए मौन साधना की सुविधा वाली जगह में बंद कर देना।
उस गुरु भक्त ने वैसे ही किया। वह गृहस्थी शिष्य 6 महीने तक अन्दर गुरु पद्धति नियम, साधना करता रहा परंतु कभी कभी इस सोच में भी पड़ जाता कि मेरी पत्नी का क्या हुआ, बच्चों का क्या हुआ होगा?
उधर उसकी पत्नी समझ गयी कि शायद पतिदेव वापस नहीं लौटेंगे। तो उसने किसी के यहाँ खेती-बाड़ी का काम शुरू कर दिया। खेती करते करते उसे हीरे जवाहरात का एक मटका मिला। उसने ईमानदारी से वह मटका खेत के मालिक को दे दिया। उसकी ईमानदारी से खुश होकर खेत के मालिक ने उसके लिए एक अच्छा मकान बनवा दिया व आजीविका हेतु ज़मीन जायदाद भी दे दी। अब वह अपनी ज़मीन पर खेती कर के खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगी।
जब वह शिष्य 6 महीने बाद घर लौटा तो देखकर हैरान हो गया और मन ही मन गुरुदेव के करुणा कृपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने लगा कि सद्गुरु ने मुझे यहाँ अहंकार मुक्त कर दिया। मैं समझता था कि मैं नहीं कमाकर दूंगा तो मेरी पत्नी और बच्चों का क्या होगा? करनेवाला तो सब परमात्मा है। लेकिन झूठे अहंकार के कारण मनुष्य समझता है कि मैं करनेवाला हूं।
वह अपने गुरूदेव के पास पहुंचा और उनके चरणों में पड़ गया। गुरुदेव ने उसे समझाते हुए कहा बेटा हर जीव का अपना-अपना प्रारब्ध होता है और उसके अनुसार उसका जीवनयापन होता है। मैं भगवान के भजन में लग जाऊंगा तो मेरे घरवालों का क्या होगा? मैं सब का पालन पोषण करता हूँ, मेरे बाद उनका क्या होगा? यह अहंकार मात्र है।
सीख वास्तव में जिस परमात्मा ने यह शरीर दिया है उसका भरण पोषण भी वही परमात्मा करता है।
प्रारब्ध पहले रच्यो पीछे भयो शरीर,
तुलसी चिंता क्या करे भज ले श्री रघुवीर
प्रस्तुतिः आशीष गोस्वामी
श्री बाँके बिहारी जी मंदिर, श्रीधाम वृंदावन, मथुरा
प्रारब्ध पहले रच्यो पीछे भयो शरीर,
तुलसी चिंता क्या करे भज ले श्री रघुवीर
प्रस्तुतिः आशीष गोस्वामी
श्री बाँके बिहारी जी मंदिर, श्रीधाम वृंदावन, मथुरा