बटुकनाथ मंदिर में स्थापित इस श्री यन्त्र के सन्दर्भ में कहा जाता है कि यह श्री चक्र एक यन्त्र है, जिसका प्रयोग श्री विद्या में होता है। इसे श्री यंत्र नव चक्रश् और महामेरु भी कहते हैं। यह सभी यत्रों में शिरोमणि है और इसे यंत्रराज भी कहा जाता है। वस्तुतः यह एक एक जटिल ज्यामितीय आकृति है। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी भगवती जया त्रिपुर सुंदरी हैं, जिनकी उपपीठ इस बटुकनाथ मंदिर में भी स्थापित है।
श्री यंत्र की पूजा से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। श्री यंत्र की पूजा और आराधना लोग लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए करते हैं, dhanteras s के दिन श्रीयंत्र का पूजन करने से माता लक्ष्मी जी अति प्रसन्न होती हैं, श्री यंत्र के केन्द्र में एक बिंदु है, इस बिंदु के चारों ओर 9 अंतर्ग्रथित त्रिभुज हैं, जो नवशक्ति के प्रतीक हैं, इन नौ त्रिभुजों के अंतर्ग्रथित होने से कुल 43 लघु त्रिभुज बनते हैं।
तीर्थनगरी के जानकार एवं ज्योतिषाचार्य डाॅ. राधाकृष्ण दीक्षित बताते हैं कि श्री यंत्र में ब्रह्मांड के स्वरुप के साथ साथ इसमें धन लक्ष्मी कुबेर का वास भी माना गया है, इसलिए नवरात्री के साथ साथ धनतेरस के दिन सोरों के बटुकनाथ मंदिर में स्थापित इस आदि श्रीयंत्र के दर्शन और मंत्रों की स्तुति मात्र से निर्धनों की निर्धनता दूर हो जाती है और जीवन सौभाग्य से भर जाता है।
मंदिर के इसी प्रांगण में सतयुग के समय का गृद्ध वट, वट वृक्ष आज भी मौजूद है। इस गृद्ध वट के नीचे अनेक वैदिक ग्रन्थों की रचना हुई है। पौराणिक अनुश्रुतियों में संसार मे चार वटवृक्षों का उल्लेख मिलता है। जिसमें पहला वट वृक्ष गृद्ध वट जो सतयुग के समय का सोरों जी में स्थित है। दूसरा त्रेतायुग में अक्षयवट जो प्रयाग में स्थित है। तीसरा द्वापर युग में वंशीवट जो वृन्दावन में स्थित है। चौथा कलयुग मे सिद्धवट जो उज्जैन में स्थित है। पौराणिक कथाओं में से एक कथा यह भी है कि भगवान श्री राम ने स्वयं यहां आकर जटायू जी का पिण्डदान किया था।