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अंग्रेजों की मुखबरी करने वालों की नाक काट कर नकटा बना देते थे

locationकटिहारPublished: Aug 16, 2020 06:17:12 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

(Bihar News ) सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली। सरहद पर कल रात सुना है। कुछ ख्वाबों का कत्ल हुआ है। क्रान्तिकारी शहीद नटाय के माथे पर गोली लगी। (Martyers of freedom) माथे पर अंग्रेजों की गोली खाकर शहीद हुए नटाय परिहार अक्सर (Revolt from British rule) अपने क्रान्तिकारी सेनानियों के बीच यही गीत गुनगुनाते थे। देवीपुर के समीप कुरसेला में रेलवे पटरी उखाडऩे में अपने सीने पर गोली खाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपने देश की हिफाजत के लिए छह साथियों के साथ शहीद हो गये।

अंग्रेजों की मुखबरी करने वालों की नाक काट कर नकटा बना देते थे

अंग्रेजों की मुखबरी करने वालों की नाक काट कर नकटा बना देते थे

कटिहार(बिहार): (Bihar News ) सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली। सरहद पर कल रात सुना है। कुछ ख्वाबों का कत्ल हुआ है। क्रान्तिकारी शहीद नटाय के माथे पर गोली लगी। (Martyers of freedom) माथे पर अंग्रेजों की गोली खाकर शहीद हुए नटाय परिहार अक्सर (Revolt from British rule) अपने क्रान्तिकारी सेनानियों के बीच यही गीत गुनगुनाते थे। समेली प्रखंड के चकला मौला नगर के 52 वर्षीय नटाय परिहार अपने साथियों के साथ मिलकर देवीपुर के समीप कुरसेला में रेलवे पटरी उखाडऩे में अपने सीने पर गोली खाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपने देश की हिफाजत के लिए छह साथियों के साथ शहीद हो गये।

अंग्रजों ने बरसाई गोलियां
स्वतंत्रता संग्राम में कटिहार के वीर सपूतों के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वीर सपूतों ने आजाद दस्ता सशस्त्र क्रांतिकारी पार्टी के नेतृत्व में गोरे सिपाहियों के छक्के छुड़ा दिए थे। 12 अगस्त को नटाय परिहार अपने साथियों के साथ केले का थंब का नाव बनाकर रेलवे पटरी उखाडऩे लगे। अंग्रेेज देवीपुर कोठी से आकर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया । जिससे सात लोगों ने अपनी शहादत दी थी। उसके चार साथी रमचू, धधुरी, जग्गू, रामजी शहीद हो गए। घायल अवस्था में स्वतंत्रता सेनानी व वैद्य नक्षत्र मालाकार ने इनका इलाज किया। गरीबी और आर्थिक तंगी के कारण कई दिनों तक अन्न, जल, दवा के अभाव में अपना दम तोड़ दिया।

अंग्रेजों के अत्याचारों पर बगावत
क्रान्तिकारी सशक्त गोरे सिपाहियों से मुकाबला के लिए पूर्व में रणनीति तैयार करते थे। इसके आधार पर धावा बोला जाता था और इसके बाद सेनानी दियारा इलाकों में शरण लेते थे। इसके लिए गंगा, कोसी और महानंदा का दियारा सेनानियों के लिए संबल बनता था। देवीपुर के समीप अंग्रेजों की कोठी थी। क्षेत्र के लोगों पर जुल्मों सितम दिनचर्या सी बन गई थी। बैलगाड़ी वालों से जबरन माल ढ़ुलवाना, बहू बेटियों की अस्मत के साथ खिलवाड़, जबरन नील की खेती में मजदूरों को प्रताडि़त कर ले जाना, कोड़े खाकर भी किसी ने बगावत की जरूरत नहीं की। अंतत: गुस्सा ज्वालामुखी का रूप ले चुका था।

मुखबिरों की नाक काट देते थे
गोरे फिरंगियों पर धावा बोलने के साथ ही अन्य सूचनाओं का आदान प्रदान गुप्त संदेश के माध्यम से होता था। इसके लिए खास शब्दों का इस्तेमाल होता था। इसमें कुछ लोग गोरे सिपाही के लिए मुखबिरी भी कर देते थे। बाद में ऐसे लोगों की पहचान कर मुखबिरों की नाक काटने की सजा मुकर्र की गई थी।

चकमा देने के लिए निकालते थे बारात
पार्टी के नेतृत्व में तैयार रणनीति के तहत सेनानी हथियार और सामान एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए बारात व अन्य सामूहिक माहौल तैयार किया जाता था। बैलगाड़ी से बारात निकलती थी और सबसे छोटे सेनानी को दूल्हा बनाया जाता था। बैलगाड़ी पर हथियार डालकर उसे बैठने लायक बनाकर बाराती गाजे बाजे के साथ निकलते थे। जबकि दो लोग आगे-आगे गोरे सिपाहियों का मुआयना करने के लिए चलते थे। इस दौरान एकबार कुसेलज़ के समीप सेनानी व गोरे सिपाही के बीच जमकर मुकाबला हुआ था। इतना ही नहीं बरारी क्षेत्र में दो बार सेनानी बारात के शक्ल में ही गोरे सिपाहियों पर हमला बोला था।

क्रान्तिकारी वेश बदल लेते थे
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोरे पुलिस की दबिश बढऩे पर सेनानी वेश बदलकर एक जगह से दूसरी जगह जाते थे। वे मछुआरा, किसान, पंडित व मौलाना का वेश बनाकर एक जगह से दूसरी जगह जाते थे। पुलिस की दबिश के कारण उन्हें बंगाली व समर के नाम से जाना जाता था। सेनानी गोरे सिपाही को चकमा देने के लिए महिला का रूप तक बना लेते थे।

13 वर्षीय शहीद
ध्रुव कुंडू का नाम स्वतंत्रता आंदोलन में देश के सबसे कम उम्र में शहीद होने वालों में शामिल है। 11 अगस्त, 1942 को क्रांतिकारियों ने रजिस्ट्री ऑफिस में आग लगाकर सभी कागजात जला दिए थे। इसके बाद मुंसिफ कोर्ट पर रणबांकुरों ने तिरंगा झंडा फहराया था। शहीद चौक के समीप थाना पर तिरंगा फहराने के दौरान 13 वर्षीय ध्रुव कुंडु के जांघ में अंग्रेजों की गोली लगी थी। हाथ में तिरंगा में लिए आगे बढ़ रहे ध्रुव कुंडु को देखकर अंग्रेजी हुकुमत के एसडीओ ने गोली चलाने का आदेश दिया था। अस्पताल में इलाज कराने के दौरान उनका निधन हो गया था। 1942 की क्रांति में शहीद चौक पर 13 वर्षीय ध्रुव कुंडू की शहादत के बाद क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार से लोहा लेने के लिए ध्रुव दल का गठन किया था।

रेल पटरी उखाड़ते हुए शहीद
आजमनगर प्रखंड अंतर्गत अरिहाना में 1942 की क्रांति में शहीद हुए झिगरु केवट को श्रद्धांजलि देकर स्थानीय लोग हर साल स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर झंडोत्तोलन करते है। शहीद झिगरु केवट व स्थानीय स्वतंत्रता सेनानी बिजली राय ने भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभायी थी। झिगरु केवट भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान झौआ रेलवे स्टेशन के पास पटरी उखाडऩे के दौरान अंग्रेजों की गोली का निशाना बने थे और शहीद हो गए थे। इनकी वीरगाथा आज भी यहाँ लोगों की जुबानों पर है।

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