बंदरगाह के रूप में थी पहचान
काढ़ागोला के गंगा तट की पहचान करीब चार दशक पूर्व तक बंदरगाह के रूप में थी। यहां कहलगांव से गिट्टी, बालू सहित मछली का बड़ा खेप लेकर स्टीमर चला करती थी। मुगल वंश के शासक शेरशाह सूरी भी बंगाल पर चढ़ाई के दौरान गंगा नदी के रास्ते काढ़ागोला गंगा घाट पहुंचकर यहां से दार्जिलिंग तक सड़क का निर्माण कराकर अपने पलटन के साथ कूच किया था। उनके द्वारा निर्मित व नामित गंगा दार्जिलिंग सड़क का फिलहाल चौड़ीकरण भी हो चुका है।
एशिया का भव्य मेला लगता था
यही नही कभी माघ पूर्णिमा पर यहां एशिया का सबसे भव्य मेला का आयोजन भी कुसेलज़ स्टेट के वारिश रघुवंश नारायण सिंह द्वारा किया जाता था। इससे राजा महाराजाओ के मनोरंजन के संसाधनो सहित दूरदराज से पहुंचने वाले श्रद्धालु सालभर के खाद्य पदार्थ सहित अन्य आवश्यक वस्तुओ की खरीददारी भी इसी मेले से करते थे। सिख पंथ के नवमें गुरु तेगबहादुर जी भी 1666 में असम यात्रा के दौरान यहां के कंतनगर मे पड़ाव डालकर महीनो सिख पंथ का प्रचार किए थे उनके द्वारा काढ़ा रूपी प्रसाद के वितरण से ही काढ़ागोला घाट एवं काढ़ागोला रोड स्टेशन का नाम भी पड़ा था।
प्रयासों में रही कमी
कई बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके विभाष चंद्र चौधरी ने कहा कि वर्तमान विधायक की विकास में कोई दिलचस्पी नहीं रही। जनसमस्याओं के समाधान में वे पूरी तरह विफल रहे हैं। जहां तक गंगा पर पुल की बात है तो इसके लिए वे खुद काफी दिनों से प्रयासरत रहे हैं। सामरिक एवं व्यवसायिक दृष्टिकोण से इस पुल की महत्ता को देखते हुए नमामि गंगे के तहत निर्मल धारा योजना का जायजा लेने कटिहार पहुंचे केन्द्रीय मंत्री उमा भारती का ध्यान भी इस ओर आकृष्ट कराया गया था। बरारी के राजद विधायक नीरज कुमार का कहना है कि यह अफसोस भी है कि यह मुद्दा जिस मजबूती के साथ उठनी चाहिए, उसमें कहीं न कहीं कमी रह गई है।