करीब 16 सौ की आबादी वाला गढ़पुरी गांव टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में है। इसलिए यहां आस-पास दस बाघों का मूवमेंट रहता है। फिर भी बच्चे न सिर्फ बेहिचक स्कूल आते-जाते हैं,बल्कि जंगल की पगडंडियों पर खेलते-कूदते रहते हैं। तीसरी कक्षा में पढऩे वाले मयंक ने बताया कि उसने तीन बार बाघ को करीब से देखा है। छठवीं के रोहित का पांच बार बाघ स सामना हो चुका है। दोनों की आंखे बाघ से मिली। उन्होंने चुहलबाजी भी की, लेकिन बाघ गुर्राए बिना आगे बढ़ गए। मिथिलेश, साधना और अंकुश ने अपने अनुभव साझा करते हुए बाघों की कद-काठी बताई। इन्ही की तरह गांव के अन्य बच्चों के भी ऐसे ही किस्से हैं।
गढ़पुरी में रहवासियों और बाघों के बीच पनपे इस अनोखे रिश्ते के आगे ह्यूमन एनिमल कनफ्लिक्ट का सिद्धांत फेल नजर आता है। 65 साल के दुलारे बैगा बताते हैं कि कई बार बाघ को करीब से देखा। एक चीज सीखी है बाघ उन्हीं को कुछ करते हैं जब उन्हे छेड़ा जाए। बाघ बिना कारण के इंसानों पर हमला करने लगे तो गांव खाली हो जाता।
मथुरा यादव ने बताया कि पिता शंभू यादव को बाघ ने झपट्टा मारा था, तब पालतू भैंसों ने बाघ से उन्हे बचाया था। नुकसान हुआ है, वह जंगल के अंदर हुआ। बाघ कभी भी गांव के अंदर नहीं आते।
टाइगर रिजर्व के खितौली रेंज के रेंजर एनपी कार्तिकेय ने बताया कि गढ़पुरी गांव बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में घने जंगल के बीच बसा है। दस से ज्यादा बाघों के मूवमेंट है। तीन दशक में बाघ के हमले इस गांव में इंसानों की मौत का एक भी मामला सामने नहीं आया है। ह्यमन एनीकल कनफ्लिक्ट के बीच यह गांव मिसाल इंसान और बाघों के बीच पारंपरिक रिश्ते का।