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खुद के नहीं पैर, लेकिन हजारों को खड़ा कर रहे पैरों में, वीडियों में देखें दिव्यांगों का हौंसला

locationकटनीPublished: Jan 11, 2019 12:04:06 pm

Submitted by:

balmeek pandey

दिव्यांगता का समझा दर्द, मर्म हरने उठाया पैरों पर खड़ा करने का बीड़ा, दो दिव्यांग कई साल से बना रहे दिव्यांगों के लिए कैलिपर्स, आर्टिफिशीयल हैंड

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Are disabled prosthetic leg and callipers

कटनी. शरीर के एक अंग में यदि कांटा भी चुभ जाता है तो वह इंसान के लिए असहनीय हो जाता है, लेकिन यदि किसी के हाथ व पैर कट जाएं, पैर चलने लायक न हों, कोई कमर से खड़ा न हो पा रहा तो फिर उसकी विवशता और लाचारी सिर्फ पीडि़त ही समझ सकता है। दिव्यांगों के दर्द को खुद दिव्यांगों ने समझा और दिव्यांगों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए पिछले कई वर्षों से कृत्रिम पैर, हाथ आदि तैयार कर पीडि़त मानता की सेवा करने का बीड़ा उठाये हुये हैं। हम बात का रहे हैं जिला अस्पताल परिसर में बने भगवान महावीर पुनस्र्थापन केंद्र में सेवा भाव से जुड़े दो दिव्यांग करीगरों की। जिन्होंने हादसे में दिव्यांगता का दंश झेलकर दिव्यांगों की पीड़ा हरने का काम कर समाज में मिसाल बने हुये हैं। गोपाल गुप्ता (40) निवासी राजीव गांधी वार्ड क्रमांक 13 ने बताया कि 97 में उसके पैर में गैंगरीन जैसी बीमारी का शिकार हो गया। दो साल में उसे अपना गंवाना पड़ गया। गोपाल ने कहा कि जो पीड़ा उसे हुई वह किसी से बयां नहीं करना चाहता। बस उसने ठान लिया है कि वह पीडि़त मानवता की सेवा करेगी। फोटो फ्रेमिंग के माध्यम से वह जीवकोपार्जन के लिए रुपये कमाने के साथ शेष समय में वह केंद्र में पहुंचकर दिव्यांगों के लिए कृत्रिम उपकरण तैयार कर रहा है। इसी तरह देव किशन नागर सन 1979 में (55) थे्रशर में हादसे का शिकार हो गए थे, जिसमें एक पैर गंवाना पड़ा। दिव्यांगता की पीड़ा को समझा और 82 से वे दिव्यांगों की सेवा में जुटे हैं।

देशभर में 9 केंद्र, हजारों लाभान्वित
खास बात यह है ये दोनों दिव्यांग शहर की संस्था भगवान महावीर विकलांग पुनस्र्थापन केंद्र से जुड़े हैं। जिसकी देशभर में 9 संस्थाएं हैं। जो 1993 से दिव्यांगों के लिए काम कर रही है। संस्थाएं नासिक, जम्मू, मथुरा, राजकोट, भुज, बड़ौदा, पालनपुर, सूरत और कटनी में हैं। अबतक 4670 पीडि़तों के ऑपरेशन, 1768 पोलियों से ग्रसित बच्चों के ऑपरेशन सहित हजारों लोगों को कृत्रिम उपकरणों से लाभान्वित किया जा चुका है। यहां पर दिव्यांग कारीगर कैलिपर्स, लिक्स, वैशाखी, ऑथोपेडिक शूज, स्प्लैंड, आर्टिफिशील हैंड, मिडिल ऑर्च, निगार्ड आदि का निर्माण कर दिव्यांगों के लिए सहारा बने हुए हैं।

1993 से जारी है सेवा
अनिल जैन ने बताया कि 1993 में केंद्र की स्थापना हुई। तत्कालीन कलेक्टर संजयबंद उपाध्याय के सौजन्य से विशाखापटनम की टीम के द्वारा 156 बच्चों के पोलियों के ऑपरेशन कराये गए। उसके बाद कोटा वालों को बुलाकर उनको कैलीपर्स लगाए गए। दिव्यांगों के लिए पैर बनाए गए। अन्य जिलों में भी शिविर लगाकर जरुरतमंदों की मदद की गई। समाजसेवियों द्वारा जन सहयोग से केंद्र बनाया गया। इसके पहले शिविर लगाकर पूर्व में 4 हजार से अधिक नेत्र रोगियों के ऑपरेशन कराए गए। दवा, कंबल, चश्मा आदि का वितरण किया गया। अनिल जैन ने बताया कि प्रत्येक माह की 9 एवं 10 तारीख को कैंप का आयोजन होगा।

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