हम मार्बल पर रायल्टी का गणित ऐसे समझ सकते हैं कि प्रदेश में मार्बल पर प्रतिघनमीटर एक हजार रुपये की रायल्टी है। राजस्थान में प्रतिटन रायल्टी 240 रुपये। एक घनमीटर मार्बल बराबर 2.67 टन। इस मानक पर राजस्थान में प्रतिघनमीटर रायल्टी 640 रुपये है। यानी मध्यप्रदेश से प्रतिघमीटर 360 रुपये कम। यह स्थिति तब है जब राजस्थान में मार्बल की क्वालिटी कटनी में मिलने वाले मार्बल से कहीं बेहतर है।
कटनी में मार्बल इकाइयों के बंद होने के पीछे दूसरा बड़ा कारण है, ओवर बर्डन।
मार्बल खदान में पूरे उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत मटेरियल बेकार चला जाता है। जिसे ओवर बर्डन यानी खंडा कहते हैं। पत्थर में जरा भी क्रेक या फैक्चर आ जाए तो उसका उपयोग नहीं हो पाता। इस अनुपयोगी खनिज को खंडा माना जाता है। इस पर रायल्टी 5 सौ रुपये प्रतिघन मीटर है। जानकारों का कहना है कि यह रायल्टी कम हो तो क्रेक पत्थर को छोटी साइज में काटकर बेचने की इकाइयां स्थापित हो जाएगी। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और शेष बचे मटेरियल का उपयोग होने से मार्बल खदान संचालकों को नुकसान की भरपाई होगी।
इन्ही सब कारणों से कटनी में मार्बल का व्यापार लगातार कम होता गया। बीते दस सालों की बात करें तो वित्तीय वर्ष 08-09 में व्यापार 1 हजार 18 हजार 552 घनमीटर का रहा। 09-10 में 121255 घनमीटर, 10-11 में 145057, 11-12 में 104604, 12-13 में 121517, 13-14 में 96406, 14-15 में 83763, 15-16 में 91206, 16-17 में 73781 व 17-18 में घटकर मार्बल का व्यापार 77 हजार 749 घनमीटर तक पहुंच गया।
कटनी जिले के मार्बल एसोसिएशन के अध्यक्ष आरके दुबे बताते हैं कि मार्बल व ओवरबर्डन (खंडा) में रायल्टी कम करने के लिए कलेक्टर के माध्यम से शासन को पत्र लिखा गया है। सबसे ज्यादा जरुरी है खंडा में रायल्टी कम हो जाए तो मार्बल प्रोसेसिंग की छोटी इकाइयां स्थापित होने लगेगी। रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
कटनी के मार्बल उद्योग पर शिकायतों का भी असर पड़ा। खसरा नंबर 220 को लेकर लगातार शिकायत के बाद न्यायालय से स्टे हो गया। अब सीमांकन पेंच फंसा है। इससे आसपास की 15 से ज्यादा इकाइयों को मार्बल खनन पर रोक लग गया। प्योर मार्बल मटेरियल इसी खसरा नंबर पर है।
यहां दस साल पहले 100 से ज्यादा मार्बल खदानें स्वीकृत थी। कुछ में खनन के बाद ज्यादा क्रेक मटेरियल मिलने से नुकसान हुआ तो कुछ रायल्टी ज्यादा होने से प्रतिस्पर्धा में नहीं टिकने के बाद बंद हो गए।
जीएसटी से पहले मार्बल पर वैट लगता था। उस समय प्रदेश में व्यापार की तुलना में मार्बल राजस्थान भेजने में वैट चार्ज कम था। इससे लोकल बाजार पर असर पड़ा। कटनी में जो इकाइयां चल रही हैं, वे अब भी उत्पादन का ज्यादा हिस्सा राजस्थान ही भेज रहे हैं।
पूरे मामले पर कटनी कलेक्टर केवीएस चौधरी का कहना है कि रायल्टी कम करने को लेकर पहले शासन को प्रपोजल गया है तो हम पता करवा लेते हैं कि उसमें प्रक्रिया कहां तक पहुंची है। आगे अपनी ओर से भी प्रयास करेंगे कि मार्बल इकाई संचालकों की परेशानी कम हो सके।