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मंच पर जीवंत कुछ इस तरह हुई ‘लाला हरदौल’ की जीवनी

locationकटनीPublished: Feb 15, 2019 12:26:37 pm

Submitted by:

balmeek pandey

संप्रेषणा नाट्य मंच का सबरंग नाट्य महोत्सव अयोजित

Biography of haraldol in katni

Biography of haraldol in katni

कटनी. संप्रेषणा नाट्य मंच कटनी के द्वारा तीन दिवसीय सबरंग नाट्य समारोह आयोजित किया गया। इस नाट्य समरोह के तीसरे व अंतिम दिन हम थियेटर ग्रुप भोपाल का बहुचर्चित तथा बहुप्रसिद्ध नाटक ‘लाला हरदौलÓ का 76वां मंचन किया गया। यह नाटक बुंदेलखंड के लोकनायक लाला हरदौल के जीवन पर आधारित है। इस नाटक के लेखक कोमल कल्याण जैन, सह निर्देशक श्री असमी सिंह तथा निर्देशन बालेन्द्र सिंह का है। इस नाटक में देवर और भाभी के पवित्र संबंध तथा आमजन में हरदौल का यश व उनके प्रति भरोसे को दर्शाया गया। मुगलों के खिलाफ कटिबद्धतर शाहजहां की सत्ता लोलुप प्रवृती तथा उनके सोंतेले भाई पहाड़ सिंह की उनके प्रति जलन के चलते लाला हरदौल के खिलाफ षड्यंत्र तथा हरदोल के विषपान इस नाटक के प्रमुख बिंदु रहा। लाला हरदौल के जीवन पर आधारित इस नाटक में उनका जीवन परिचय बड़ों के प्रति उनका मान-सम्मान तथा अपनी प्रजा के सुख व हितों के लिए सतत प्रयास को प्रदर्शित किया गया। इन्हीं सब कारणों से उन्हें उनकी प्रजा और उनके बड़े भैया जुझार सिंह व भाभी चम्पावती भी अत्यंत स्नेह करते थे। जिस बात से उनके मझले भैया पहाड़ सिंह को बड़ी तकलीफ होती थी और वे अन्दर ही अन्दर उनसे बहुत ही जलते थे। मौका पाकर उन्होंने मेहंदी हुसैन के हांथो हरदौल को जान से मारवाने की कोशिश की, लेकिन उसमें वे असफल रहे। फिर पहाड़ सिंह ने अपने मित्र हिदायत खां की मदद से एक षड्यंत्र रचा और अपने बड़े भाई जुझार सिंह के मन में हरदौल के खिलाफ विष भर दिया कि हरदौल तथा उनकी पत्नी चम्पावती के संबंध अच्छे नही हैं। जिसके चलते राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चम्पावती को यह आदेश दिया की वह अपनी पवित्रता साबित करे और पवित्रता साबित करने के लिये उन्हें अपने देवर हरदौल को विष भरी खीर खिलानी होगी।

रानी ने कराया विषपान
रानी चम्पावती ने अपने पति के आज्ञा को मानते हुए हरदौल को विषपान कराया और उसके बाद ही स्वयं देह त्याग दिया। तब राजा जुझार सिंह को यह अहसास हुआ कि उन्होंने व्यर्थ ही उन दोनों पे शक किया। प्रचलित कथा यह भी कहती है कि लाला हरदौल मरने के बाद भी अपनी भांजी की शादी में भात परोसने आए थे। आज भी कई प्रान्तों में लाला हरदौल पूजनीय हैं। गीत, संगीत, नृत्य से भरे इस नाटक को दर्शकों द्वारा बहुत ही पसंद किया गया। संप्रेषणा नाट्य मंच के द्वितीय सबरंग समरोह को कटनी की जनता के द्वारा बहुत पसंद किया गया।

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