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प्रजा की खुशहाली के लिए खौलते कढ़ाव में कूद गया ये शख्स, फिर हुआ गजब का चमत्कार, देखें वीडियो

locationकटनीPublished: Mar 20, 2018 11:53:46 am

Submitted by:

balmeek pandey

मां के दर्शन पूजन को उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़

Navratri 2018: Date, Prasad and Significance of Chaitra Navratri 2018

Navratri 2018: Date, Prasad and Significance of Chaitra Navratri 2018

कटनी. समूचा देश मां आदिशक्ति की अराधना में डूबा हुआ है। श्रद्धालु अलग-अलग ढंग से माता के प्रति अपनी आस्था प्रकट कर रहे हैं। मां आदिशक्ति की महिमा पूरे ब्रम्हांड में अद्वितीय है। आपने खूब किमदंतियां सुनी होंगी व मां के कई ऐसे चमत्कार देखे व सुनें होंगे जिससे आस्था आपके मन में हिलोरे मार रही होगी। ऐसा ही एक चमत्कार या मां का राजा के प्रति प्रेम कहें, बारडोली की धरा में बिलहरी नाम से प्रख्यात नगरी जो कभी राजा कर्ण की राजधानी हुआ करती थी। यहां पर विराजी हैं मां चंडी जो प्रतिदिन राजा कर्ण को सवा मन सोना दिया करती थीं, जिसे राजा उसे जरुरतमंदों को दान कर देता थे। ऐसी कृपा बरसाने वाली मां के दरबार में दर्शन-पूजन को भीड़ उमड़ रही है। कटनी शहर से महज 15 किलोमीटर बिलहरी नगर जिसे लोग वर्तमान में पुष्पावती नगरी के नाम से भी जानते हैं। यहां के हरेक पत्थर पर नक्कासीव कलाकृतियां खुद ब खुद अपने समय की सुंदरता का इतिहास उजागर करती हैं। इन्ही सब कलाकृतियों के बीच स्थित है मां चंडी का भव्य मंदिर।

ऐसे माता प्रदान करती थीं सवा मन सोना
मंदिर के पंडा रोहित प्रसाद माली ने बताया कि यहां राजा कर्ण राज्य करते थे और प्रतिदिन प्रजा को सोना दान करते थे। राजा कर्ण सूर्योदय से पूर्व स्नान करके चंडी देवी के मंदिर जाते थे जहां विशाल कढ़ाव में तेेल उबलता था जिसमें राजा कर्ण कूद जाते थे। इसके बाद देवी उन पर अमृत छिड़ककर जीवित करती थीं और ढाई मन सोना प्रदान करती थीं। देवी से प्राप्त सोना राजा रोज सुबह सवा मन सोना गरीबों को दान में दिया करते थे।

 

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ऐसे खुला था सोने का रहस्य
राजा कर्ण रोज गरीबों को सोना दान करते थे लेकिन इतना सोना उनके पास आता कहां से था यह इस राज को जानने की हिमाकत किसी ने नहीं की और फिर इस रहस्य का खुलासा राजा विक्रमादित्य ने किया था। वह एक बालक की खोज में बिलहरी आए थे। विक्रमादित्य के राज्य मे कोई बुढिय़ा माई रहती थी जो चक्की पीसते समय कभी रोती थी तो कभी हंसती थी। वेश बदलकर प्रजा का सुख-दुख जानने जब रोज की तरह रात में विक्रमादित्य वहां से गुजरे तो माई से रोने व हंसने कारण पूछा जिस पर बुढिया ने बताया कि उसका जवान बेटा 20 वर्षों से खोया हुआ है जिसके याद में वह रो पड़ती है और कभी आएगा इसी आश में हंस पड़ती है।

 

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उज्जैन से आए थे विक्रमादित्य
वृद्धा के हाल से दुखी महाराज स्वयं उसके पुत्र को खोजने निकल पड़े और बिलहरी पहुंच गए जहां सूत्रों से उन्हें ज्ञात हुआ कि वृद्धा का खोया हुृआ पुत्र राजा कर्ण की चौकीदारी करता है। राजा विक्रमादित्य ने युवक को मुक्त कराके उसकी मां के पास भेजा और रोज सोना दान करने की रहस्य जानने के लिए जासूसी करने लगे जिस दौरान उन्हें सारा भेद खुला। इसके बाद राजा विक्रमादित्य स्वयं राजा के स्थान में कढ़ाहे में कूद गए और वरदान स्वरूप देवी से सोना प्राप्त होने वाला अक्षय पात्र व अमृत कलश साथ ले गए थे। ऐसी कृपा बरसाने वाली मां के दरबार में भक्तों का तांता लग रहा है।


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