ऐसे माता प्रदान करती थीं सवा मन सोना
मंदिर के पंडा रोहित प्रसाद माली ने बताया कि यहां राजा कर्ण राज्य करते थे और प्रतिदिन प्रजा को सोना दान करते थे। राजा कर्ण सूर्योदय से पूर्व स्नान करके चंडी देवी के मंदिर जाते थे जहां विशाल कढ़ाव में तेेल उबलता था जिसमें राजा कर्ण कूद जाते थे। इसके बाद देवी उन पर अमृत छिड़ककर जीवित करती थीं और ढाई मन सोना प्रदान करती थीं। देवी से प्राप्त सोना राजा रोज सुबह सवा मन सोना गरीबों को दान में दिया करते थे।
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ऐसे खुला था सोने का रहस्य
राजा कर्ण रोज गरीबों को सोना दान करते थे लेकिन इतना सोना उनके पास आता कहां से था यह इस राज को जानने की हिमाकत किसी ने नहीं की और फिर इस रहस्य का खुलासा राजा विक्रमादित्य ने किया था। वह एक बालक की खोज में बिलहरी आए थे। विक्रमादित्य के राज्य मे कोई बुढिय़ा माई रहती थी जो चक्की पीसते समय कभी रोती थी तो कभी हंसती थी। वेश बदलकर प्रजा का सुख-दुख जानने जब रोज की तरह रात में विक्रमादित्य वहां से गुजरे तो माई से रोने व हंसने कारण पूछा जिस पर बुढिया ने बताया कि उसका जवान बेटा 20 वर्षों से खोया हुआ है जिसके याद में वह रो पड़ती है और कभी आएगा इसी आश में हंस पड़ती है।
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उज्जैन से आए थे विक्रमादित्य
वृद्धा के हाल से दुखी महाराज स्वयं उसके पुत्र को खोजने निकल पड़े और बिलहरी पहुंच गए जहां सूत्रों से उन्हें ज्ञात हुआ कि वृद्धा का खोया हुृआ पुत्र राजा कर्ण की चौकीदारी करता है। राजा विक्रमादित्य ने युवक को मुक्त कराके उसकी मां के पास भेजा और रोज सोना दान करने की रहस्य जानने के लिए जासूसी करने लगे जिस दौरान उन्हें सारा भेद खुला। इसके बाद राजा विक्रमादित्य स्वयं राजा के स्थान में कढ़ाहे में कूद गए और वरदान स्वरूप देवी से सोना प्राप्त होने वाला अक्षय पात्र व अमृत कलश साथ ले गए थे। ऐसी कृपा बरसाने वाली मां के दरबार में भक्तों का तांता लग रहा है।