कटनी

इनकी चॉकलेट ने ऐसा लुभाया कि खाने स्कूल आने लगे बच्चे, देखें वीडियो

-जिले में एक शिक्षक ऐसा भी जिसने चलाया खुद का अभियान, दो साल पहले आते थे 100 से कम बच्चे, अब आ रहे 146-हर दिन दो किमी की साइकिल चलाकर पहुंचते हैं स्कूल
 

कटनीAug 01, 2019 / 10:29 am

dharmendra pandey

साइकिल से स्कूल आते प्रधानपाठक टी खेस्क।

कटनी. सरकारी स्कूलों में बच्चोंं की संख्या बढ़ाने शासन द्वारा कई प्रकार की योजना चलाई जा रही हैं, लेकिन बच्चों की संख्या जस की तस बनी हुई है। स्कूल में बच्चे आए और गुणवत्ता बढ़े, इसके लिए स्कूल के हेडमास्टर ने दिमाग लगाया। कॉपी, पेन, पेंसिल, कटर, रबर व चॉकलेट के सहारे स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ा दी। अब ये बच्चे स्कूल आने से डरते नहीं बल्कि इनकी चौकलेट खाने आने लगे। हेडमास्टर को दो किमी दूर साइकिल से आता देख छात्र इनका पीछा कर लेते हैं। स्कूल में छात्रों की संख्या बढऩे के साथ ही गुणवत्त्ता भी बढ़ गई। प्रधानपाठक का नवाचार काम कर गया। अपने वेतन से अब ये रोज 100 से 150 रुपये खर्च कर बच्चों के लिए सामग्री लाते हैं और बांटते है।
प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में अधिक से अधिक छात्र दाखिला लेकर पढ़ाई करें, इसके लिए स्कूल चले हम अभियान, मध्यान्ह भोजन, गणवेश व किताब कॉपी बांटने जैसी कई प्रकार की योजना चलाई जा रही हैं। इसके बाद भी छात्रों की संख्या नहीं बढ़ पा रही थी। ऐसे में शासकीय माध्यमिक शाला खितौली उटिन टोला में पदस्थ प्रभारी टी खेस्स ने नवाचार किया। उसके पीछे मेहनत की। स्कूल से बच्चों को जोडऩे उन्होंने पहले तो खुद के वेतन से 10 पंखें लगवाए। इसके बाद बच्चों को कॉपी, पेन, पेंसिल, डबर, कटर व चॉकलेट देना शुरू किया। पढ़ाई पर भी ध्यान दिया। अब ऐसी हालत बन गई कि गांव में खुली निजी स्कूलों में बच्चे जाना ही नहीं पंसद कर रहे। सरकारी स्कूल में दाखिला लेने के लिए अभिभावक चक्कर लगा रहे है।
तीन साल पहले मुरैना से खिलौती आए थे प्रभारी प्रधानपाठक
शासकीय माध्यमिक शाला खितौली उटिन टोला में पदस्थ प्रभारी प्रधानपाठक टी खेस्स मूल रूप से छत्तीसगढ़ के जिला जसपुर लोखंडी के रहने वाले हैं। साल 2015-16 में वे मुरैना के शासकीय हाइस्कूल अमलड़ा तहसील पुरसा से तबादले पर कटनी आए। उस समय पहली से आंठवी तक स्कूल में छात्रों की संख्या 100 से कम थी। बच्चों से लगाव व पढ़ाई के प्रति सजग रहने वाले शिक्षक टी खेस्स ने गांव में जनसंपर्क शुरू किया। अभिभावकों को सरकारी स्कूल के प्रति जागरुक किया। तीन साल के भीतर स्कूल में बच्चों की संख्या 146 तक पहुंच गई है। गर्मी में पंखेंं नहीं होने से स्कूल में बैठना मुश्किल था। पसीने से तरबतर देख उन्होंने खुद के पैसे से 10 पंखें लगवाएं। बच्चों को पेन, पेंसिल, कॉपी व टॉफी बांटना शुरू किया।
हर माह खर्च कर रहे 2500 से 3000 हजार रुपये
शिक्षक टी खेस्स ने बताया कि बच्चों के पीछे हर माह 2500 से 3 हजार रुपये खर्च हो रहे है। बिजली की फिटिंग हो गई है। खुद के पैसे से हर माह 300 रुपये तक बिल जमा करने को भी कहा है। गरीबी में मैं किस मुसीबत में पढ़ा हूं यह मैं जानता हूं। इसी दर्द को समझते हुए बच्चों की सहायता करने की मन में इच्छा जागी। जिस वजह से पिछले दो साल से मैं लगातार बच्चों की मदद कर रहा हूं।

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