कटनीPublished: Oct 15, 2018 11:48:34 am
dharmendra pandey
सत्ताधारी दल के लोग देते रहे आश्वासन, विपक्षी पार्टी भी नहीं बना सकीं दबाव
City bus
कटनी. लगातार बढ़ती आबादी के बीच शहर के नागरिक सिटी बस की मांग लंबे अर्सें से करते आ रहे हैं। इधर, नागरिकों की इस मांग पर पार्टियों ने भी राजनीतिक रोटी सेेकने में कोई कसर नही छोड़ी। विधानसभा, लोकसभा चुनाव से लेकर नगर निगम के चुनाव में सिटी बस को सड़क पर उतारना सभी दलों का प्रमुख मुद्दा रहा। हर चुनाव के बाद शहरवासियों की उम्मीद रही कि इस चुनाव के बाद सिटी बस जरूर चलेगी, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगीं।
शहर में सिटी बस चलाने की प्रक्रिया साल 2011-12 के बीच शुरू हुई थी। उस समय योजना का नाम जवाहरलाल नेहरू अर्बन योजना थी। साल 2013 में केंद्र में भाजपा की सरकार आई और योजना का नाम बदलकर दीनदयाल सिटी बस सर्विस कर दिया गया। शहर में सिटी बस चलाने की प्रक्रिया को सात साल का लंबा समय बीत गया है, लेकिन यह सड़क पर दौड़ नहीं सकीं। शहर में सिटी बस चलाने के लिए दो बार नगरीय प्रशासन भोपाल व 4 बार नगर निगम द्वारा टेंडर जारी किए। इधर, शहर में सिटी बस चलाने को लेकर सत्ता पक्ष व विपक्ष के जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की गई। सात साल से सिर्फ आश्वासन व आरोपों का ही दौर चल रहा है।
क्या कहते हैं प्रमुख पार्टियों के जिलाध्यक्ष
शहरवासियों को सिटी बस सफर करने की जल्द से जल्द सुविधा मिले, इसके लिए पार्टी स्तर पूरा प्रयास किया गया। महापौर सेे कई बार चर्चा कर कहा भी गया है कि सिटी बस शुरू कराएं। शहरवासियों को बेहतर सुविधाएं दिलाने के लिए प्रयास किए जा रहे है।
पीतांबर टोपनानी, जिलाध्यक्ष बीजेपी।
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शहरवासियों को सिटी बस की सुविधा दिलाने के लिए कांग्रेस पार्टी हर बार नगर निगम की बैठक में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। नगर निगम में जब कांग्रेस का शासन था उसी समय सिटी बस चलाने की प्रक्रिया पूरी हो गई थी। टेेंडर हो गए थे, लेकिन केंद्र में जब भाजपा की सरकार आई, तो योजना को बदल दिया गया और सिटी बस नहीं चल सकीं।
मिथिलेश जैन, कांग्रेस जिलाध्यक्ष शहर।
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शहरवासियों को यदि सिटी बस की सुविधा चालू हो जाती है, तो समय व किराए दोनों की बचत होती। वर्तमान समय में यदि रेलवे स्टेशन से कलेक्ट्रेट कार्यालय जाना हो तो 20 से 25 रुपये भाड़ा लगता है। ऑटो से जाना पड़ता है।
राजेश भास्कर
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वर्तमान समय में यदि बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन जाना होता है, तो ऑटो का सहारा लेना पड़ता है। ऑटो में जब तक 5 से 6 सवारी नही बैठ जाते तब तक वे जाते ही नही है। सुरक्षा के लिहाज से ऑटो चालकों पर विश्वास नही किया जा सकता है।
प्रीति सेन
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