बता दें कि जिले में शहर से गांव तक कूड़ा-कचरा उठाने का जिम्मा एमएसडब्ल्यू कंपनी को सौंपा गया है। इस कंपनी का काम ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजना के तहत पूरे शहर की सफाई करना है। इसके तहत डोर टू डोर का कचरा संग्रहण कर ट्रांसफर स्टेशन में एकत्रित किया जाता है। गाड़ी में गीला कचरा और सूखा कचरा अलग-अलग लेने की प्रक्रिया होती है, लेकिन ठेकेदार की मनमानी से सूखा और गीला कचरा मिक्स करके ढोया जा रहा है। वो भी बिना ढके।
कंपनी के लोग बिना तरपाल से ढके कचरा गाडियों को आबादी क्षेत्र और बाजार से होकर गुजारते हैं। इससे संक्रामक बीमारी फैलने का खतरा बन गया है। ये हाल तब है जब सरकारी स्तर से लाखों रुपया का खर्च करके ट्रांसफर स्टेशन बनाया गया लेकिन संपूर्ण कचरे को रोड के किनारे खुले में फेंक दिया जा रहा है, जिससे कचरा बारिश होने पर सड़कर बदबू करने लगा है। ऐसे में ठेकेदार की मनमानी के चलते पूरे शहर में प्रदूषण फैल रहा है। नगर में जगह-जगह लगे कचरे के ढेर को मवेशी सडकों पर फैला रहे हैं। ये सड़ा हुआ कचरा खाने से मवेशियों की मौत भी हो रही है जिससे खतरा ज्यादा ही बढ़ गया है।
एमएसडब्ल्यू कंपनी के ठेकेदार की मनमानी इतने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कचरा उठाने वाले कर्मचारियों की जान भी सांसत में है। बताया जा रहा है कि इन कर्मचारियों को कोई सुविधा नही दी गई है। कर्मचारियों के पास सेफ्टी शू, दस्ताने तक नहीं है। वहीं कोविड महामारी से बचाव के लिए भी कोई एहतियात नहीं बरता जा रहा है। कंपनी के कचरा ट्रांसफर स्टेशन में भी कर्मचारियों के लिए किसी तरह की सुविधाएं नहीं है। कचरा ट्रांसफर स्टेशन के आसपास का वातावरण स्वच्छ रखने लिए कंपनी को पौधरोपण करना था लेकिन वो भी नहीं हुआ।