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गैस सिलेंडर से किया किनारा, चूल्हे में पक रहा खाना

जिलेभर में 25 फीसदी उपभोक्ता ही उज्ज्वला योजना के तहत भरवा रहे टंकी

कटनीJan 28, 2019 / 12:35 pm

sudhir shrivas

गैस सिलेंडर से किया किनारा, चूल्हे में पक रहा खाना

चूल्हे में पक रहा खाना

धर्मेन्द्र पांडे. कटनी। प्रदेश में 4 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना लागू हुई थी। इसे 26 माह हो गए हैं लेकिन पीएम नरेन्द्र मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना भी धुएं के बीच खाना बना रहीं महिलाओं के आंसू कम नहीं कर पाई है। गांवों में महिलाएं अब भी चूल्हे में लकड़ी व कंडे से खाना बना रही हैं जबकि उज्ज्वला योजना के तहत मिले गैस चूल्हे व सिलेंडर घरों में रखे धूल खा रहे है।
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति यह है कि गैस खत्म हो जाने पर 75 फीसदी लोग दोबारा टंकी भरवाने ही नहीं पहुंच रहे हैं। जिले में उज्ज्वला योजना के 26 माह पूरे हो जाने पर पत्रिका ने पड़ताल की तो सामने आया कि 25 फीसदी लोग ही उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर भरवा रहे हैं। जिले में उज्ज्वला के तहत एक लाख से अधिक उपभोक्ताओं को गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं लेकिन टंकी खत्म होने पर दूसरी बार भरवाने कम लोग ही पहुंच रहे हैं। इसका प्रमुख कारण महंगाई व 6 से 7 सिलेंडर में सब्सिडी न मिलना है। तहसील क्षेत्र विजयराघवगढ़ के ग्राम पडख़ुरी में 100 से अधिक घरों में उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर बांटे गए हैं। बस स्टैंड स्थित गुप्ता गैस एजेंसी के अशोक केशरवानी का कहना है कि उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर भरवाने कम लोग ही आते हैं। एक दिन में अगर 100 उपभोक्ता सिलेंडर भरवाने आते है तो इसमें 10 उपभोक्ता ही उज्ज्वला के होते हंै। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में अब भी जागरुकता की कमी बनी हुई है।

ये बोलीं महिलाएं

ग्राम पंचायत पडख़ुरी निवासी रूपाबाई मोंगरे ने बताया कि उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर को मिले हुए डेढ़ साल से अधिक समय हो गया है। पहली बार जो भरा हुआ सिलेंडर मिला था, उसी को लगभग चार माह तक उपयोग किया। खत्म होने के बाद दोबारा भराने के लिए रुपये नहीं मिले। घर में आसानी से लकड़ी व कंडे मिल जाते हैं इसलिए दोबारा नहीं भराया। गांव की सुभद्राबाई ने बताया कि 2 साल हो गए हैं। इस बीच एक बार ही सिलेंडर भरवाया था। सिलेंडर बहुत महंगा है। एक हजार रुपये में एक सिलेंडर मिलता है। इसलिए चूल्हे में ही खाना बनाते हैं। पहली बार जो सिलेंडर मिला था, वह करीब ढाई से तीन माह तक चला था। घर पर मवेशी होने की वजह से लकड़ी व कंडे मिलने में परेशानी नहीं होती है। आशाबाई साहू ने बताया कि दो साल पहले 500 रुपये में सिलेंडर मिला था। खत्म होने पर जब भरवाने जाओ तो एक हजार रुपये लगता है। गैस टंकी बहुत महंगी मिलती है। हर समय गरीबों के पास इसे भराने के लिए पैसे नहीं रहते हैं। 200-300 की हो तो इंसान कुछ व्यवस्था करे। खत्म होने पर हजार रुपये कहां से लाएं इसलिए लकड़ी-कंडे से ही खाना बनाना अच्छा है।

इनका कहना है- जिले में उज्ज्वला योजना के तहत 1 लाख 12 हजार 957 हितग्राहियों को गैस चूल्हा व सिलेंडर बांटे गए हैं। जिलेभर में उज्ज्वला योजना के लगभग 25 फीसदी हितग्राही ही सिलेंडर भरवाने आ रहे हैं। -केएस भदौरिया, प्रभारी, जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी

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