ये बोलीं महिलाएं
ग्राम पंचायत पडख़ुरी निवासी रूपाबाई मोंगरे ने बताया कि उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर को मिले हुए डेढ़ साल से अधिक समय हो गया है। पहली बार जो भरा हुआ सिलेंडर मिला था, उसी को लगभग चार माह तक उपयोग किया। खत्म होने के बाद दोबारा भराने के लिए रुपये नहीं मिले। घर में आसानी से लकड़ी व कंडे मिल जाते हैं इसलिए दोबारा नहीं भराया। गांव की सुभद्राबाई ने बताया कि 2 साल हो गए हैं। इस बीच एक बार ही सिलेंडर भरवाया था। सिलेंडर बहुत महंगा है। एक हजार रुपये में एक सिलेंडर मिलता है। इसलिए चूल्हे में ही खाना बनाते हैं। पहली बार जो सिलेंडर मिला था, वह करीब ढाई से तीन माह तक चला था। घर पर मवेशी होने की वजह से लकड़ी व कंडे मिलने में परेशानी नहीं होती है। आशाबाई साहू ने बताया कि दो साल पहले 500 रुपये में सिलेंडर मिला था। खत्म होने पर जब भरवाने जाओ तो एक हजार रुपये लगता है। गैस टंकी बहुत महंगी मिलती है। हर समय गरीबों के पास इसे भराने के लिए पैसे नहीं रहते हैं। 200-300 की हो तो इंसान कुछ व्यवस्था करे। खत्म होने पर हजार रुपये कहां से लाएं इसलिए लकड़ी-कंडे से ही खाना बनाना अच्छा है।
इनका कहना है- जिले में उज्ज्वला योजना के तहत 1 लाख 12 हजार 957 हितग्राहियों को गैस चूल्हा व सिलेंडर बांटे गए हैं। जिलेभर में उज्ज्वला योजना के लगभग 25 फीसदी हितग्राही ही सिलेंडर भरवाने आ रहे हैं। -केएस भदौरिया, प्रभारी, जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी