– उद्योगों के सामने चुनौती यह है कि उत्पादन शुरू भी कर दें तो बड़े बाजार जैसे मुंबई, दिल्ली व इंदौर सहित अन्य शहरों में माल की डिमांड नहीं है। अभी भी इन शहरों में पचास प्रतिशत काम बंद है।
– ट्रेनों की आवाजाही बंद होने के बाद शहर में इससे जुड़े हजारों लोग प्रभावित हुए हैं। समाजसेवी और दूसरे माध्यमों से अब तक इन्हे मदद मिलती रही, लेकिन अब जरूरी होगा इनको काम मिले।
फैक्ट फाइल
– 29 हजार 231 लोग अब तक बाहर से लौटे हैं। जरूरी होगा इन लोगों को लिए स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।
– 56 हजार श्रमिकों को मनरेगा योजना में काम से जोड़ा गया है। इस संख्या और बढ़ाने की जरूरत है।
– 2 सौ से ज्यादा दाल मिल और राइस मिल में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर तो हैं, जरूरी है बाजार खुले।
जैविक कृषि एक्सपर्ट रामसुख दुबे के अनुसार कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान किसान जैविक खेती के माध्यम से आत्मनिर्भर हो सकते हैं। जैविक खाद के अंतर्गत केचुआ खाद, नाडेप टांका खाद, गोबर कंपोस्ट एवं कीट नाशक के अंतर्गत गौमूत्र, अकौआ धतूरा नीम आदि की पत्तियों से कीटनाशक बनाकर खाद एवं कीट नाशक का उपयोग अपनी फसलों में करके बाजार में लगने वाला पैसा बच सकता है। केंचुआ खाद एवं केचुआ विक्रयकर रुपये कमा सकते हैं। जीरो बजट की खेती फार्मूला अपनाकर कृषक आत्मनिर्भर होंगे, कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन होगा।
मानवजीवन विकास समिति के सचिव निर्भय सिंह बताते हैं कि धरती लोगों की आवश्यकता पूरी कर सकती है, लालच नहीं। इसी सिद्धांत के तहत गांव में ग्रामीण अर्थव्यवस्था जमीन आधारित ही टिक सकती है। उन्नत खेती, सब्जी उत्पादन, समूहों के माध्यम से घरेलू उत्पाद, स्वरोजगार, नए-नए फसल चक्र से महामारी जैसे विपदा का सामना भी कर सकने की ताकत होगी। आगे आने वाली पीढ़ी का स्वास्थ्य भी ठीक होगा। खेती, मुर्गी पालन, बकरी पालन, छोटे-छोटे कुटीर उद्योग धंधे को अपनाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। गांव में अनाज बैंक, श्रम बैंक, ग्राम कोष जैसी अवधारणाओं पर अमल करना होगा। गांव की अर्थव्यवस्था वाटिका को मजबूत रखने के लिए अधिक से अधिक लोगों को काम दिया जाए, पलायन को रोकने मजबूत योजना बने।
दयोदय पशु सेवा केंद्र के महामंत्री प्रमोद जैन के अनुसार संपूर्ण विश्व में कोरोना महामारी से प्रत्येक जीव भयभीत है। हमें स्वयं अपनी आत्मरक्षा के साथ स्वावलंबन की ओर बढऩा होगा। एकदफा पुराने भारत की ओर उस स्वर्णिम युग की ओर वापस होना होगा जहां हर घर में स्वयं का रोजगार था, स्वयं का पशुपालन था। लोग अपने घर में ही अपने उपयोग का सामान व्यवस्थित कर लेते हैं। आज यह परिस्थिति है कि हम दूसरों पर आश्रित हैं। ऐसी परिस्थिति में हम यदि पशुपालन, उससे होने वाले उत्पाद स्वयं की गोबर गैस उत्पादन एवं गोमूत्र से कीटनाशक आदि का उत्पादन करके पंचगव्य का उत्पादन करके निरोगी भी हो सकते हैं और लोगों को भी निरोग कर सकते हैं। वर्तमान के परिपेक्ष में गोवंश का संरक्षण और संवर्धन अति आवश्यक है। मवेशियों के माध्यम से खेती, गौ पालन से दूध, दही, छाछ, घी का कारोबार, खाद, कीटनाशक उत्पाद से आय प्राप्त कर सकते हैं।