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इस जिले में संक्रमण हुआ भयावह, हर दिन हो रही तीन से चार बच्चों की मौत, फिर भी हरकत में नहीं स्वास्थ्य विभाग

locationकटनीPublished: Mar 01, 2019 11:47:22 am

Submitted by:

balmeek pandey

तीन साल में 302 नहीं देख पाए दुनिया तो 2573 बच्चे हुए कालकलवित, जिले में घटने की बजाय बढ़ रहा शिशु मृत्य दर का आंकड़ा, अकेले 2018 में 1116 नवजात व बच्चों की हो गई मौत

mother and child

mother and child

बालमीक पांडेय @ कटनी. केन्द्र से लेकर प्रदेश सरकार तक मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए करोड़ों रुपयों की योजनाएं चला रही है, बावजूद इसके चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं। जिले में मौत का ये आंकड़ा पिछले तीन सालों में दो हजार की संख्या को पार कर चुका है। मां और बच्चों की सुरक्षा को लेकर जिले का स्वास्थ्य महकमा बेपरवाह बना हुआ है। दुर्भाग्य है कि कुछ महिलाएं मां तो बन गईं, लेकिन प्रसव के दौरान या कुछ दिन बाद उनके लाड़ले की मौत हो गई। स्वास्थ्य विभाग के एचएमआइएस आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन साल में जिलेभर में 2574 बच्चे काल के गाल में समा गए हैं। अकेले 2018-19 में 14 फरवरी तक 1116 शिशुओं की इस दुनिया में आने के बाद मौत हो गई। सबसे ज्यादा मौत संक्रमण से हो रही है। तीन साल में 1424 बच्चों ने दम तोड़ दिया है। हैरानी की बात तो यह है सबसे ज्यादा भयावह स्थिति शहरी सेक्टर की है । कन्हवारा सेक्टर में 773 बच्चों की बच्चों की मौत 2018-19 में हुई है। जबकि रीठी, बहोरीबंद और विजयराघवगढ़ में मौत का आंकड़ा सबसे कम है। जमीनी स्तर पर गांव-गांव जाकर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक न करना, साथ ही गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की देखभाल व शिशु की देखभाल न करने के कारण यह स्थिति बनी हुई है। तीन साल में 24 घंटे के अंदर 302 बच्चों मौत हो चुकी है। 1200 बच्चे अपना पहला जन्म दिन ही नहीं मना पाए। जन्म से माहभर के अंदर 980 बच्चों की मौत हो गई। एक से 5 साल के अंतराल में 658 बच्चे कालकवलित हो गए। ये आंकड़े स्वास्थ्य विभाग के संस्थागत प्रसव के हैं। जिले के अधिकांश लोग प्राइवेट क्लीनिक में प्रसव कराते हैं इस वजह से आंकड़ा कुछ कम है, वरना स्थिति और चिंताजनक होती।

ये है खास-खास
– गर्भवती महिला व गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता का अभाव।
– आंगनबाड़ी व हेल्थ सेंटर में सही पौष्टिक आहार न मिलना, प्रोटिन विटामिन की कमी।
– महिला के स्वास्थ्य को लेकर अभियान में स्वास्थ्य विभाग द्वारा गंभीर न होना।
– बाल विवाह, प्रसवपूर्व और बाद में पूरी जांच न होना, स्तनपान सहित टीकाकरण।

ये है आंकड़ा
वर्ष बच्चों की मौत
2018-19 1116
2017-18 960
2016-17 497

ये बने मौत के कारण
बच्चों की मौत का कारण समय से पहले जन्म लेने के कारण होने वाली जटिलताएं, विलंबित और जटिल प्रसव, निमोनिया, सेप्सि और अतिसार यानी संक्रमण है। इसी प्रकार जन्मजात असामान्यताएं, समय पूर्व जन्म, जन्म के समय वजन कम होना, निमोनिया, एस्फेक्सिया, जन्म आघात, अन्य गैर संचारी बीमारियां, डायरिया, जन्मजात विसंगतियां आदि बताई जा रही हैं।

यह है मौत की हकीकत
मौत दिन और उम्र 2018-19 2017-18 2016-17
24 घंटे में मौत 131 139 32
01 से 28 दिन में सेप्सिस से 56 61 08
04 सप्ताह में अन्य कारणों से 268 302 135
12 माह में निमोनिया से 53 81 67
12 माह में डायरिया से 02 04 02
12 माह में बुखार से 13 28 19
12 माह में मीजल्स से 03 00 01
05 साल के बच्चों की मौत 184 143 102
05 साल तक बुखार से 09 27 13
05 साल तक अन्य कारण से 76 112 102

ये उपाय हैं जरूरी
– स्वास्थ्य संस्थाओं और सेवाओं का सुदृढ़ीकरण।
– बाल विवाह को पूरी तरह रोका जाना।
– बेहतर पोषण व्यवस्था, आंगनवाड़ी सेवाओं को मजबूती।
– प्रसवपूर्व और बाद में पूरी जांच, स्तनपान।
– पूर्ण टीकाकरण।

इनका कहना है
यह मामला बेहद गंभीर है। बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ा रहा है तो तत्काल इसके वास्तविक कारणों को पता किया जाएगा। सीएमएचओ और सीएस से चर्चा की छोटे से लेकर बड़े बिंदु पर कार्ययोजना बनाएंगे। जच्चा और बच्चा की सुरक्षा के लिए विशेष पहल की जाएगी।
केवीएस चौधरी, कलेक्टर।

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