जिले में माइनिंग के विभिन्न प्लॉटों के अलावा फैक्ट्रियां संचालित हो रही हैं। विजयराघवगढ़ के बरही, कैमोर व कटनी रेंज में क्रशर सहित फैक्ट्रियां संचालित हो रही हैं। इनमें नियमों का पालन नहीं हो रहा है। हाल ही में जिले के प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने स्टोन क्रशर संचालकों को नोटिस देकर जिले में प्रदूषण के नियमों को पालन करने के लिए कहा है। यहां पर ज्यादातर क्रशर पर्यावरण के मानकों के नियमों को ताक पर रखकर संचालित हो रहे हैं। विजयराघवगढ़, कैमोर व बरही क्षेत्र में क्रशर की धूल से ग्रामीण बीमार हो रहे हैं।
इन क्षेत्रों में वर्षों से क्रशर चल तो रहे हैं लेकिन नियमों का पालन नहीं हो रहा। पिछले दिनों ग्रामीणों ने भी इस संबंध में आवाज बुलंद की थी। उनका कहना था कि उनके गांव में संचालित क्रशरों में न तो नियमानुसार पानी का छिड़काव किया जा रहा है न पर्यावरण के लिहाज से जरूरी प्लांटेशन किया जा रहा जा है। इसका सीधा असर स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। कई ग्रामीण असमय बीमार पड़ रहे हैं। इन क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि उनका घर से निकलना मुश्किल हो गया है। धूल व असमय ब्लॉस्टिंग से वे बेहद परेशान हैं।
ऐसे में जहां इंसानों का जीवन कठिन हो गया हो वहां पक्षियों का क्या हाल होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। आलम यह है कि इन्हीं देवसरी, मेहगांव क्षेत्र में ही गिद्धों के प्राकृतिक आवास हैं। कैमोर क्षेत्र के पहाड़ों में यह गिद्ध पत्थरों के बीच अपना आवास बनाते हैं लेकिन दिनोंदिन इनकी संख्या कम हो रही है। यह चिंता का विषय है। पिछली गणना के सापेक्ष गिद्धों की संख्या में कमी आई है। पहले जिले में 83 गिद्ध गणना में पता चले थे। अब उनकी संख्या 64 हो गई है।
करीब दो साल हुई गणना में जिले में 83 गिद्ध पाए गए थे। अब 7 फरवरी 2021 को रविवार सुबह हुई गणना में पिछले बार से कम गिद्ध गणना में पाए गए हैं। वहीं गणना के दौरान मैदानी अमले को गिद्ध के 42 आवास स्थल (घोंसलें) भी पेड़ों व अन्य स्थानों पर मिले हैं। रविवार सुबह 6 से 9 बजे के बीच जिले के सभी वन क्षेत्रों में एक साथ हुई गणना में कुल गिद्ध पाए गए हैं। सबसे ज्यादा सफेद रंग (इजिप्शियन प्रजाति) के गिद्ध जिले में मिले हैं। इसके अलावा देशी गिद्ध भी मिले हैं।