कैसे मिला अधिकार
फरवरी 2014 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने ट्रेन से चोरी गए महिला डॉक्टर के सामान की राशि का भुगतान रेलवे को करने का आदेश दिया। रेलवे ने इस पर दलील दी कि ये मामला रेलवे क्लेम टिब्यूनल में ही सुना जा सकता है जबकि यात्री के वकील के मुताबिक टिब्यूनल में सिर्फ रेलवे में बुक पार्सल के मामलों को ही सुना जाता है। न्यायमूर्ति सीके प्रसाद और पिनाकीचंद्र घोष की पीठ ने 17 साल पुराने इस मामले में रेलवे की दलील को खारिज कर दिया और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया। यह अधिकार यात्रियों के लिए जितना सुविधाजनक है, उतना ही रेलवे और पुलिस के लिए मुश्किल भरा। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि इसकी जानकारी यात्रियों को नहीं है और न ही इस जानकारी को उन तक पहुंचाने के लिए कोई कारगर कदम उठाए गए हैं।
छह माह करना होगा इंतजार
चोरी गए सामान को तलाशने के लिए जीआरपी के पास छह माह का वक्त होगा। इस दरमियान यदि पुलिस पीडि़त का सामान नहीं तलाश पाती तो वह उपभोक्ता फोरम जा सकता है। इसके लिए एफआईआर दर्ज कराते समय पुलिस को पीडि़त से उपभोक्ता फोरम फार्म भरवाना होगा। ओरिजनल कॉपी पीडि़त के पास होगी और पुलिस कार्बन कॉपी अपने पास रखेगी। एफआईआर और फार्म ही यात्री का मूल दस्तावेज होगा, जिसके आधार वह केस दर्ज कराएगा।
ये हैं आपके अधिकार
यह सुविधा सिर्फ स्लीपर या एसी कोच में रिजर्वेशन कराने वाले यात्रियों के लिए है। उपभोक्ता फोरम के जानकार एडवोकेट बताते हैं कि रिजर्वेशन के दौरान यात्री से 2 रुपए सुरक्षा शुल्क लिया जाता है। इधर, ट्रेन में स्लीपर कोच यात्री को दिया जाता है, जिसके बाद यह तय होता है कि आपने उस ट्रेन में सोने का अधिकार दिया है और इस दौरान जो भी घटना होती है, उसका जिम्मेदार रेलवे ही होगा। ट्रेन के स्लीपर या एसी कोच में यात्रा करते समय यात्री का सामान चोरी होता है तो शिकायत दर्ज करते वक्त उससे उपभोक्ता फोरम का फार्म भरवाया जाता है। यदि 6 माह तक पुलिस उसका सामान नहीं तलाश पाती तो वह फार्म की कॉपी ले जाकर उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज कर सकता है, जहां पर रेलवे को पीडि़त का हर्जाना देना होगा।