धूल व धुआं वाले प्रदूषण की वजह से शासकीय माध्यमिक शाला बड़ारी में पढ़ाने वाली शिक्षिक अलका श्रीवास्तव मौत के मुहाने तक पहुंच गई थी। उन्होंने बताया कि १५ दिन तक जबलपुर में वेंटिलेटर पर रहीं। गुडग़ांव गई, वहां पर डॉक्टरों ने गले में ऑपरेशन किया।
जिला पंचायत सदस्य गुड्डू दीक्षित ने बताया कि बड़ारी गांव के आदिवासी मोहल्ले में ५०० लोग निवास करते है। पांचसाल के भीतर ३५ लोग टीबी की बीमारी का शिकार होकर मर चुके है। अब भी गांव में ५० प्रतिशत लोग इस बीमारी की चपेट में है।
एक्सपर्ट व्यू:
जिस जगह प्रदूषण का मानक स्तर १०० से अधिक हो जाता है, उस गांव में जीवन यापन करना बेहद कठिन हो जाता है। लोग तरह-तरह की बीमारियों का शिकार होते है।
डॉ. सुधीर खरे, प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र।
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