भारत में प्लेग का प्रकोप वर्ष 1896 से शुरु हुआ। हांगकांग से भारत आए एक समुद्री जहाज में चूहों से यह महामारी फैली। करीब तीस साल तक भारत में रही इस महामारी से लाखों लोगों की मृत्यु हुई। बीमारी ने उत्तर भारत में सबसे ज्यादा हमला किया। महामारी से बचाने के लिए अंग्रेज सरकार ने पूरी ताकत लगाई लेकिन वे लोगों को बचा नहीं सके।
सरकार की इस योजना से घर-घर पहुंच रही बिजली, आप भी उठाएं फायदा एक अंग्रेज चिकित्सक डॉ.वाल्डीमार हॉफकिन्स मुम्बई की प्रयोगशाला में रोग के टीके का अविष्कार करने में जुट गए। 10 जनवरी 1897 को उन्होंने प्लेग के टीके की खोज की। जयपुर की सरकार ने भारी तादाद में मुंबर्इ से टीके खरीदे आैर प्रजा को निशुल्क टीका लगाने की व्यवस्था की गर्इ। सांगानेरी गेट के मेयो अस्पताल, पानीपेच के लैण्ड्स डाऊनी अस्पताल (वर्तमान आर्मी हॉस्पिटल) में टीके लगाने की व्यवस्था की। ग्रामीण इलाके में 15 स्थानों पर टीका लगाने के शिविर लगे। डॉ.वेलन्टाइन, डॉ. संजय गांगुली, डॉ. फिशर आदि चिकित्सकों की टीम ने चौड़ा रास्ता के महाराजा पुस्तकालय भवन में स्थापित जयपुर मेडिकल हॉल में रोगियों का उपचार किया। डॉ. गांगुली वर्ष 1920 तक सेवा में रहे।
Video: छुट्टी के दिन नहाने गए तीन किशोरों की गड्ढ़े में डूबने से मौत स्कॉटिश मिशनरी के अलावा डॉ. जॉर्ज मेकोलिस्टर ने रोगियों की सेवा में ताकत लगा दी। डॉ. मैकोलिस्टर को केसरी हिंद का सम्मान दिया गया। शहर में प्लेग फैलने पर बाहर से जयपुर में आने व जाने पर रोक लगा दी गई। रेलवे स्टेशन पर स्वास्थ्य जांच के बाद ही शहर में प्रवेश दिया जाता। जंगलों में भी अस्थाई आइसोलेशन वार्ड स्थापित किए। प्लेग का एेसा असर रहा कि काफी प्रयास के बाद भी जयपुर शहर व रियासत के गांवों में हजारों लोगों को बचाने में कामयाबी नहीं मिल सकी।