जहां 3 से 4 घण्टे तक कतार में लगने पर पुराने नोटों के बदले नए नोट मिल रहे हैं। लेकिन ये पैसे बीमारी का उपचार एवं शादी व घर खर्च चलाने में नाकाफी साबित हो रहा है। भोजन एवं बच्चों के लिए दूध एवं अन्य रोजमर्रा की जरुरत का सामान भी बाजार से उधार लेकर काम चलाना मजबूरी बन गया है।
नांगवास निवासी 80 वर्षीय धन्नीदेवी ने बताया कि उसका पुत्र बीमार है। पांच सौ व हजार का नोट चिकित्सक व मेडिकल वाला नहीं ले रहा है। घर में आटा खत्म हो गया है, लेकिन नोट नहीं बदलने से मजबूरी में बाजरे की रोटी बना कर खिलानी पड़ रही है। हरिसिंह बैरवा निवासी खूंटला बास ने बताया कि पहचान पत्र देकर पैसे बदलवाने का नियम है, लेकिन बैंक प्रशासन हठधर्मिता अपनाते हुए प्रत्येक व्यक्ति से बैंक पासबुक मांग रहा है।
कामां निवासी मुकेश सैनी ने बताया कि वह परिवार के साथ यहा सौफों के गद्दे भराई का काम करता है। पत्नी को लेकर बैंक आया तो पासबुक मांग ली। अब उसके सामने घर खर्च चलाने की नौबत आ गई। गुढ़ाकटला निवासी दिलीप शर्मा ने बताया कि पासबुक के अभाव में पुलिस ने अंदर जाने से रोक दिया। जबकि बैंक प्रशासन की ओर से पासबुक से भुगतान किए जाने की सूचना बाहर बोर्ड पर चस्पा नहीं कर आमजन को परेशान किया है।
दूध मुंहे बच्चों को लेकर कतार में घर खर्च के लिए महिलाएं अपने नन्हें-मुन्हे बच्चों को गोद में लेकर ही बैंक एवं डाकघर पहुंची। जहां दो से तीन घण्टे तक बच्चों को गोद में लेकर कतार में लगना पड़ा। दूधमुहे बच्चे भूख लगने पर रोने लगे, तो मां कतार में ही जमीन पर बैठ गई और दूध पिलाकर बच्चों की भूख मिटाई।
नांगवास निवासी अनोखी देवी का कहना है कि वह सुबह साढ़े 9 बजे रेलवे कॉलोनी स्थित डाकघर पहुंची। तो उनके आगे 100 से अधिक महिलाएं एवं युवतियां कतार में लगी हुई थी। राधा देवी ने बताया कि वह अपने एक वर्षीय व तीन वर्षीय बच्चे को लेकर बैंक पहुंची,लेकिन भीड़ अधिक होने व बच्चों के परेशान होते देख बिना नोट बदलाए ही निराश लौटना पड़ा।
पैसे नहीं मिले तो रो पड़ा मारवाड़ी जोधपुर निवासी दुर्गाराम मारवाड़ी नोट बदलवाने के लिए सुबह सिकंदरा रोड स्थित एसबीबीजे बैंक पहुंचा। जहां पुलिस ने पासबुक नहीं होने पर अंदर जाने से रोक दिया। मारवाड़ी पुलिस के हाथ जोड़कर नोट बदलवाने की गुहार लगाता दिखाई दिए, लेकिन पुलिस ने नियमों का हवाला देकर कतार से हटा दिया। इस पर दुर्गाराम की आंखे भर आई और आंसू बहना शुरू हो गया। यह नजारा देख अन्य लोग भी मारवाड़ी को देख भावुक हो गए। इसी बीच हरनाथपुरा निवासी राजकुमार शर्मा ने पीडि़त को ढांढ़स बंधाया। राजकुमार ने एक हजार का नोट लेकर स्वयं की जेब में रखे सौ-सौ के एक हजार रुपए मारवाड़ी को दे दिए। दुर्गाराम ने बताया कि उसने खुल्ले पैसे नहीं होने से सोमवार शाम 50 रुपए उधार लेकर पेट भरा। वह यहां भेड़पालन का काम करता है। नोट नहीं बदले जाने से भेड़ों के सामने भी चारे पानी का संकट खड़ा हो गया है। अब उसे अपने गांव जोधपुर जाना है, लेकिन खर्चे के लिए पैसे नहीं मिलने से गांव जाना भी मुश्किल हो गया है।
गीजगढ़ ञ्च पत्रिका. कस्बे की स्टेट बैंक की शाखा में मंगलवार को सुबह सात बजे से ही उपभोक्ताओं की कतार लग गई। जो अपराह्न बाद तक जारी रही। गीजगढ़, अचलपुरा, जयंङ्क्षसहपुरा, घूमणा, कालवान के लगभग पांच दर्जन गांवों का एक मात्र स्टेट बैंक की शाखा में हजारों ग्रामीणों के खाते हैं, वहीं एटीएम भी लगा रखा है, लेकिन उसमें 8 नवम्बर के बाद से आज तक उसमें रुपए नहीं रखे गए। इससे उपभोक्ताओं को परेशानी हो रही है। ग्रामीणों ने बैंक शाखा खुलवाने की मांग की है।