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मैहर की माता की तरह यहां स्वयं होती है पूजा

locationकटनीPublished: Apr 10, 2019 12:00:25 am

तिगवां गांव में चंदेलवंश के राजाओं ने कराई थी मातारानी की प्राण प्रतिष्ठा, मां शारदा का तीन गांवों में प्रभाव

Maihar- Mother Sharda's influence in three villages

Maihar- Mother Sharda’s influence in three villages

स्लीमनाबाद। चैत्र नवरात्र में पूरा क्षेत्र मातारानी की आराधना में जुटा है। क्षेत्र के कई मंदिर ऐसे हैं, जिनका इतिहास भी सैकड़ों वर्ष पुराना है। ऐसा ही बहोरीबंद तहसील का तिगवां का मां शारदा मंदिर है। जहां चंदेलवंश के राजाओं ने मातारानी की स्थापना कराई थी। यहां हर साल नवरात्र में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मां शारदा का प्रभाव ऐसा है कि यहां एकमात्र उनकी ही पूजा होती है और नवरात्र के समय तिगवां, अमगवां व देवरी गांव में प्रतिमाओं की स्थापना नहीं कराई जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां माता ही प्रधान मानी जाती हैं और इस कारण से अन्य किसी देवी की पूजा नहीं होती है। यहां पर भी मां शारदा मंदिर मैहर की तरह ही सुबह स्वयं से पूजन होने की चर्चा है तो मंदिर में प्रतिमा में श्रद्धालुओंं द्वारा अर्पित किए जाने वाला जल कहां जाता है, इसका भी रहस्य बरकरार है।


मंदिर में जलती है अखंड ज्योति

ग्रामीण भोलाराम पटेल, शिवराज सिंह पटेल, जौहर चौधरी ने बताया कि तहसील का यह प्रसिद्ध मंदिर है। जहां १२ माह अखंड ज्योति जलती है और उसका भी दर्शन करने लोग आते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर के अंदर की मान्यता है कि यहां पर लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है तो परिसर के अंदर कोई चोरी नहीं होती है। चोरी करने वालों को कठिन दंड भोगना होता है। पुरातत्व विभाग के अधीन मंदिर को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि पुरानी धरोहर को सहेजने पर्याप्त इंतजाम नहीं है और इसके चलते यहां का विकास नहीं हो पा रहा है।

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