बही भक्ति की बयार
आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के ससंघ के सान्निध्य में गजरथ फेरी शुरू हुई।आचार्य श्री स्वयं गजरथ पथ पर मुनियों के साथ पैदल चल रहे थे। गजपथ के किनारे कड़ी धूप में पुरुष-महिलाएं और बच्चे दर्शन के लिए प्रतीक्षारत रहे।सन्मति म्यूजिकल ग्रुप टीकमगढ़, विशाल बैंड पार्टी जबलपुर, प्रतिभा स्थली की कन्याएं और शिवनगरी की मातृ शक्ति बैंड की मधुर धुन से महोत्सव स्थल पर भक्ति की बयार बहा दी। गजरथ फेरी में शामिल रथों की गई। सौधर्म इंद्र, माता-पिता, कुबेर सहित सभी इंद्र-इंद्राणी रथों से मोतियों की बरसात कर रहे थे।
बंधन का एहसास खोलता है मुक्ति के द्वार
प्रवचन में मुनिवरों ने कहा, बंधन का एहसास ही मुक्ति के द्वार खोलता है। हम रातभर अपनी इच्छा से कमरे में बंद रह सकते हैं। जब हमें रात में उठना पड़े और पता चले कि दरवाजा बाहर से बंद है। तब एक क्षण भी शांत नहीं रह सकते। दरवाजा खोलने के लिए हरसंभव प्रयत्न करते हैं। इसी प्रकार जिस साधक को यह एहसास होता है कि उसकी आत्मा कर्म के बंधन से बंधी है अर्थात् जब बंधन का एहसास होता है। तभी वह मुक्ति के लिए छटपटाता है। मुनिवरों ने आगे कहा, जैनेश्वरी दीक्षा से साधक पाप के मूल कारणों से मुक्त हो जाता है। वह जैसे-जैसे साधना की गहराई में उतरता है, वैसे-वैसे उसकी आत्मा का सौंदर्य निखरने लगता है और पर से मुक्ति होने लगती है।
हाथी पर हुए विराजमान इंद्र
युग प्रवर्तक, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के जन्म कल्याणक में तेवरी मै भक्तिमय महौल था। ऐरावत स्वरूप सफेद हाथी पर तीर्थंकर बालक के साथ विराजमान सौधर्म इंद्र के साथ इंद्र इंद्राणियां और श्रावकों ने शोभायात्रा निकाली तो सबके चेहरों पर भक्ति और खुशी के भाव आ गए। गजरथ महोत्सव स्थल पर स्थित पांडुक शिला पर इंद्र इंद्राणियों ने रत्न जडि़त 1008 कलशों से भगवान का अभिषेक किया गया।
सपने साकार होते हैं, सत्य के आकार होते हैं
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने प्रवचनों में कहा कि कौन कहता है सपने साकार नहीं होते होते हैं, सत्य के आकार नहीं होते हैं। ऐसा नहीं है क्योंकि माता मरुदेवी के सपने साकार हुए हैं, कर्मयुग के प्रारंभ में आदिनाथ भारत-भू पर अवतरित हुए हैं। भारतीय वसुंधरा रत्गर्भा के साथ-साथ साधुगर्भा भी है। धरती की कोख से जहां रत्न निकलते हैं, वहीं माता मरु देवी की कोख से आदिनाथ, त्रिशला की कोख से भगवान महावीर और मां कौशल्या की कोख से प्रभु श्रीराम से जगमग चेतन रत्न निकलते हैं।
बच्चों ने दी सांस्कृतिक प्रस्तुति
पंचकल्याणक महोत्सव का तीसरा कल्याणक तप कल्याणक भगवान ऋषभदेव अपने राजपाट में इतने लवलीन हो जाते है कि उन्हें वैराग्य का ध्यान ही नहीं रहता तब इंद्र नीलांजना जिसकी आयु कुछ ही पलों की शेष रह जाती है। राज्य भवन में नृत्य करवाता है नृत्य की मध्य में नीलांजना की मृत्यु हो जाती है देव अपने अतिशय से दूसरी नीलांजना खडी कर देते है, लेकिन युवराज को बोध हो जाता है है वो सोचते है मैं कहा संसार के राग में फंस के रह गया और वो जंगल की ओर विहार कर देते है आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी पूरे विधी विधान से संस्कार करवाते हैं जिसे पूरे पंडाल में उपस्थित हजारों श्रद्धालूओं ने देखा। पूरा पंडाल खचाखच भरा रहा जिसे देखने जबलपुर, कटनी, भोपाल, भिंड, बहोरीबंद, स्लीमनाबाद, बाकल, सिहोरा व अन्य जगहों से श्रद्धालू पहुंचे। उसके बाद आचार्यश्री की मंगल देशना हुई। जिसमें सैकडो युवाओं ने व्यसन का त्याग किया जिसमें मांस, मद्य व नशा का त्याग किया।
इनकी रही उपस्थिति
इस दौरान विधायक प्रणय पांडेय, जिलाध्यक्ष कांग्रेस ग्रामीण गुमान सिंह, एसडीओपी पी के सारस्वत, जनपद सीईओ शिवानी जैन, नायब तहसीलदार शैवाल सिंह, थाना प्रभारी प्रफुल्ल श्रीवास्तव, सुभाष जैन, कमलेश जैन, पवन जैन, कैलाशचंद्र जैन, ऋषभ जैन, टेकचंद जैन, धनेंद्र जैन, अभय जैन, संतोष जैन, संजय जैन, अशोक जैन, राजेश जैन, प्रशांत जैन, प्रकाश जैन सहित सकल जैन समाज सहित विशाल जनसैलाब की उपस्थिति रही।