जानकारों के अनुसार सडक़ के निर्माण में कम्पेक्शन का काम सही से नहीं किया गया है, जिसके कारण यह जगह-जगह से टूट रही है। सडक़ की मरम्मत के लिए ठेकेदारों द्वारा कहीं डामर केमिकल का पेस्ट भरने तो कहीं टांके लगाने का काम किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि अभी से सडक़ का यह हाल है तो आने वाले कुछ सालों में यह पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाएगी। जुहला बाइपास की सडक़ तो पूरी तरह से उखडऩे के बाद दोबारा बनाई गई है। वर्तमान में सडक़ में आई दरारों को केमिकल और साल्वेंट से अस्थाई रूप से ढंकने का भी प्रयास नहीं किया जा रहा।
नेशनल हाईवे-30 में भी समान समस्या
कटनी से जबलपुर मार्ग पर स्थित नेशनल हाईवे-30 में भी यही समस्या देखने को मिल रही है। यहां भी सडक़ पर कई जगह दरारें आ गई हैं और मोटर वाहन चालकों को आवागमन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। लगातार हो रही लापरवाही और गुणवत्ता विहीन निर्माण ने सरकारी परियोजनाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि एमपीआरडीसी के अधिकारियों व जिम्मेदारों को सडक़ की गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए और ठेकेदारों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। लोग मांग कर रहे हैं कि सडक़ की मरम्मत के नाम पर अस्थाई सुधारों के बजाय स्थायी और गुणवत्तापूर्ण कार्य किया जाए, ताकि लोगों को आवागमन में परेशानी और दुर्घटनाओं से बचाव हो सके।