कटनी

डाकिया बन घर-घर पहुंचा रहीं चि_ी, संभाल रहीं परिवार

पति की मौत के बाद मिली अनुकंपा नौकरी, महिलाओं के लिए बनीं संघर्ष की मिशाल

कटनीMar 08, 2019 / 11:51 am

dharmendra pandey

The postman became home to the house, the family holding the house

कटनी. साल 2006 में पति की मौत हो गई, तो अनुकंपा नौकरी मिली। सोचा नहीं था, कि इस तरह का काम करना पड़ेगा। हर दिन घर-घर जाकर डाक बांटना पड़ेगा। शुरू में यह काम थोड़ा से अटपटा जरूर लगा। शर्म भी आईं। परिवार के लोगों को बताया तो सबने मना भी किया, लेकिन मैं नहीं मानी। आज मैं करीब 8 साल से सुरक्षित लोगों के डाक घर-घर पहुंचा रहीं हूं। महिलाओं के लिए मिशाल बन चुकी संघर्ष की यह कहानी हैं कि 41 साल की महिला अर्चना चौबे की। कटनी के निवासी अर्चना चौबे (40) के पति डाकघर में बाबू थे। साल 2006 में अचानक उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद अनुकंपा नौकरी मिली। परिवार में दो बेटियां है। वो भी छोटी थी। बेटा है नहीं। पति की मौत के बाद घर में कोई कमाने वाला था नहीं। खुद नौकरी करने की सोची। कक्षा 10वीं तक पढ़ी थी, सोचा कि ऑफिस का काम मिल जाएगा, लेकिन कम पढ़ी होने के कारण नहीं मिला। घर-घर डाक पहुंचने की जिम्मेदारी मिली। जिसको स्वीकार किया। वाहन चलाते तो आता नहीं, इसलिए पैदल ही लोगों के घर जाकर डाक बांट रही हूं। महिला अर्चना ने बताया कि सास को पैरालायसिस हो गया है। घर पर सास व दो बेटियों के अलावा कोई नही है। सुबह घर का सारा काम निपटाकर 10 बजे हर दिन ऑफिस पहुंचती है। इसके बाद झोले में डाक लेकर पैदल ही बांटने जाती है। पिछले 8 साल से हर दिन पांच से छह किमी पैदल चल रही है। सारा काम निपटाकर शाम 5.30 बजे घर के लिए निकलती है। फिर घर की जिम्मेदारी संभालती है। महिला अर्चना कहती है कि कोई भी काम बुरा नहीं होता है। आज ऐसा कोई काम नही है जो महिला नही कर सकती है।

 
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