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कुंडली में छिपा है दाम्पत्य जीवन का बिखराव

locationकटनीPublished: Jun 19, 2019 07:36:08 pm

कुंडली में गुरु अशुभ होने पर अच्छे कार्य के बाद भी मिलता है अपयश, अनजाने में हो जाता है अपमान

The scandal of a married life hidden in the horoscope

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जबलपुर। यदि कुंडली में गुरु अशुभ हो तो अच्छे कार्य के बाद भी अपयश मिलता है। आभूषण खो जाता है, सिर के बाल जल्दी झडऩे लगते हैं। वचन टूट जाता है। व्यक्ति के द्वारा पूज्य व्यक्ति या धार्मिक क्रियाओं का अनजाने में ही अपमान हो जाता है या कोई धर्मग्रंथ नष्ट होता है।
यदि कर्क लग्न हो और गुरु 7वें भाव में हो तो जातक ता दाम्पत्य जीवन बहुत कष्टमय होता।
यदि जातक की कुंडली में गुरु-राहू की युति 1, 4, 5, 7, 10वे भाव के अतिरिक्त किसी भी भाव में हो तो वह जातक जीवन में जरूर शराब पीता है।
यदि 2, 5, 9, 12वें भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह हो या शत्रु ग्रह उसके साथ हो तो भी बृहस्पति मंदा फल देने लगता है।
यदि गोचर में गुरू चंद्रमा से 4, 6, 8, 10 या 12वें भाव में आता है तो यह गुरू जातक को कष्ट दायक होता है। गुरु चन्द्रमा से 4थे भाव में आने पर माता को तथा 10वें भाव में आने पर पिता को तथा अन्य भावों में आने पर स्वयं को कष्टकारी होता है।
यदि किसी स्त्री का गुरु अशुभ भावों 6, 8, 12वें भाव में होगा तो दाम्पत्य जीवन में अनावश्यक कष्ट जरूर देता है।
यदि गुरु बलहीन हो तो जातक को बलहीन, विवेकहीन, अन्यायी, कलंक, अपमान, राज दण्ड से भय आदि प्रदान करवाता है।
यदि मेष, वर्षभ, मिथुन, कर्क, सिंह, धनु, मकर, कुम्भ लग्नों में गुरू-शनि की युति होगी तो इस युति का कोई भी शुभ फल जातक को प्राप्त नहीं होता है।
यदि वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु, और मीन लग्न में गुरु-शुक्र की युति हो तो जातक को कोई शुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
यदि गुरु अपने भाव से 6, 8, 12वें भाव में स्थित हो तो हानिकारक होता है यही स्थिति चंद लग्न से भी होती है।
यदि गुरु वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला अथवा मकर राशि का होकर 1, 4, 5, 7, 9, 10वें भाव में हो तो गुरु उस भाव से सम्बन्धीत अशुभ फल देता है।
यदि 9वें भाव में गुरु-शनि की युति हो अथवा दोनों की दृष्टि 9वें भाव पर हो तो जातक संन्यासी प्रवृत्ति का होगा है या संन्यासी होगा।

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