महेश बचपन से ही 80 फीसदी से अधिक दिव्यांग हैं. उन्हें अभी तक ट्राइसाइकिल नहीं मिली है. इसके लिए पत्नी ने घर से पति को तैयार कर पटिया में बैठाकर पटिया घसीटते हुए बस स्टेंड लाई थीं. दो सौ रुपये किराया भी लगाया, कटनी पर ऑटो से कचहरी चौकी पहुंची 80 रुपये फिर किराया चुकाया और फिर पटिया से घसीटते हुए पति को एसडीएम कार्यालय लेकर पहुंची थीं.
वहां से पता चला कि द्वारिका भवन में ट्राइसाइकिल का वितरण हो रहा है, उत्साह के साथ वे शिविर में पहुंच गई. उम्मीद थी कि अब बस कुछ मिनटों में पटिया में पति को घसीटने की समस्या दूर हो जाएगी, लेकिन इस बार भी मीराबाई को बड़ी निराशा हाथ लगी. शिविर में बुलाने के बाद उसे यह कह दिया गया कि तुम्हारे पति को ढीमरखेड़ा में ही वाहन मिलेगा.दंपत्ति निराश होकर लौट गए।
वहां से पता चला कि द्वारिका भवन में ट्राइसाइकिल का वितरण हो रहा है, उत्साह के साथ वे शिविर में पहुंच गई. उम्मीद थी कि अब बस कुछ मिनटों में पटिया में पति को घसीटने की समस्या दूर हो जाएगी, लेकिन इस बार भी मीराबाई को बड़ी निराशा हाथ लगी. शिविर में बुलाने के बाद उसे यह कह दिया गया कि तुम्हारे पति को ढीमरखेड़ा में ही वाहन मिलेगा.दंपत्ति निराश होकर लौट गए।
सिर्फ जयपुर से मिली मदद
महेश ने बताया कि 600 रुपयें पेंशन मिलती है, सोमवार को पांच सौ रुपये से ज्यादा खर्च हो गए। 35 किलो अनाज में गुजर-बसर कर रहे हैं। मझगवां से एक दोस्त गोविंद की साइकिल मांग लिए है, वह खराब हो गई है। लेकिन अब हमारा कर्तव्य होता है कि सही करवाकर साइकिल लौटा दें, लेकिन चार्जर सहित अन्य सामान भी नहीं मिला। जयपुर से हाथ वाली गाड़ी लेकर आए थे, वह खराब हो गई है।
महेश ने बताया कि 600 रुपयें पेंशन मिलती है, सोमवार को पांच सौ रुपये से ज्यादा खर्च हो गए। 35 किलो अनाज में गुजर-बसर कर रहे हैं। मझगवां से एक दोस्त गोविंद की साइकिल मांग लिए है, वह खराब हो गई है। लेकिन अब हमारा कर्तव्य होता है कि सही करवाकर साइकिल लौटा दें, लेकिन चार्जर सहित अन्य सामान भी नहीं मिला। जयपुर से हाथ वाली गाड़ी लेकर आए थे, वह खराब हो गई है।
लॉकडाउन के कारण जयपुर भी नहीं जा पाए, हालांकि लाभ सिर्फ जयपुर से मिला है। शासन-प्रशासन के हम अधीन हैं, नहीं देगी तो न कुछ कह सकते न कुछ कर सकते। भगवान पर भरोसा है। अच्छा है तो सही है, बुरा है तो सही है। अब जो कष्ट लिखे हैं वह तो भोगने पड़ेंगे। महेश ने कहा कि किसी से कोई शिकवा नहीं है। महेश का कहना है कि साइकिल नहीं देना था तो न बुलाते।