अधिकारियों की बैठक, आयोजनों में होंगी अतिथि
बहादुर बेटी अर्चना केवट को एक दिन का कलेक्टर बनाने का निर्णय जिला प्रशासन ने लिया है। कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने बताया कि 8 मार्च को अन्र्तराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अर्चना जिले की एक दिन की कलेक्टर होंगी। इस दिन वे टाईम लिमिट की बैठक में विभिन्न विभागों का रिव्यू करेंगी। साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आयोजित जिलास्तरीय कार्यक्रम शीरो में मुख्य अतिथि के रुप में शामिल होंगी। अर्चना विभिन्न शासकीय कार्यों को भी संभालेंगी।
अर्चना बतौर कलेक्टर सोमवार 8 मार्च को प्रात: 10.30 बजे जिला पंचायत सभाकक्ष में समय सीमा की बैठक लेंगी। इसके बाद दोपहर 12 बजे ग्राम पंचायत चाका में अन्र्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित विशेष ग्राम सभा में शामिल होंगी। इसके बाद अन्र्तराष्ट्रीय महिला दिवस के जिलास्तरीय कार्यक्रम में शामिल होने दोपहर 1 बजे बस स्टेंड स्थित ऑडिटोरियम पहुंचेंगी। दोपहर 3 बजे वन स्टॉप सेन्टर का निरीक्षण और शाम 4 बजे बालिका गृह का निरीक्षण करेंगी।
मनचलों को सबक सिखाने की कहानी, अर्चना की जुबानी
उस घटना के बारे में अर्चना बतातीं हैं कि 12 जनवरी को कैमोर से साइकिल से घर लौटते समय एसीसी कॉलोनी के समीप दो छोटी लड़कियां रास्ते में मिलीं। दोनों रो रहीं थी, उन्होंने बताया कि दो लड़के उन्हे छेड़ रहे हैं। अर्चना उन दोनों बेटियों के साथ हुईं और बोली कि ऐसा कुछ भी हो तो बिना डरे विरोध करें। वे उन बेटियों के साथ घर जा रहीं थीं तभी दोनों शोहदे वापस रास्ते में मिल गए। इतना ही नहीं दोनों सामने आकर खड़े हो गए और दो बेटियों के अलावा अर्चना से भी अभ्रदता करने लगे। तब अर्चना ने बिना डरे दोनों लड़कों से भिंड गईं। इस बीच अर्चना पर जब दोनों लड़के भारी पडऩे लगे तब दोनों बेटियां दौड़कर आसपास के लोगों को बुलाने चलीं गईं। यह देखकर दोनों शोहदे भागने लगे तो अर्चना ने एक लडऩे को पकड़ लिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तब तक अन्य लोग पहुंच नहीं गए। शोहदे को पकड़कर पुलिस के हवाले किया गया और पुलिस ने दूसरे साथी को भी पकड़कर कार्रवाई की।
अर्चना ने पत्रिका से बताया बेटियों के साथ परेशानी हो तो क्या करें
अर्चना केवट ने बताया कि उनके सामने शोहदों से लडऩे का हौसला महिला सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों को सुनकर आया। उन्होंने पत्रिका के माध्यम से संदेश दिया कि बेटियों के साथ कहीं भी कुछ गलत हो रहा तो घर मेंं परिवारजनों के साथ परेशानी जरूर साझा करें। परिवार से भी कहूंगी कि परेशानी को समझें और उसके बेहतर निदान के लिए सोच विचारकर निर्णय लें।
स्व-सहायता समूह को बनाया ताकत, ‘शकुन’ ने बदलाव कर दिखाया-
स्वसहायता समूहों के जरिए तस्वीर और तकदीर को कैसे बदला जा सकता है, इसका एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है, कटनी जिले की एक महिला शकुन ने। शकुन ने अपने नाम के ही अनुरूप गांव के लिए सौभाग्य की एक बानगी पेश की है। कटनी के विजयराघवगढ़ विकासखण्ड के चरी गांव की रहने वाली शकुन पटेल सिलाई का काम करती थीं, जिससे उनका गुजर-बसर भी ठीक से नहीं हो पाता था। शकुन के मुताबिक वे महीने में बमुश्किल 4 हजार रुपये तक कमा पाती थीं।
इस बीच 2017 में शकुन पटेल को स्व-सहायता समूह के गठन के फायदे का पता चला। उन्होंने आस-पास की 14 महिलाओं को जोड़ कर एक समूह का गठन किया। अब सरस्वती स्व-सहायता समूह की महिलाओं के प्रयासों से मुर्गी पालन, बकरी पालन, जैविक खाद निर्माण, जैविक कीटनाशक व वर्मी नॉपेड उत्पादन जैसे काम शुरू किए गए हैं। शकुन ने खुद कृषि और राज मिस्त्री के अलावा बैंकसखी का प्रशिक्षण हासिल किया। स्थानीय मांग, वक्त के तकाजे और हौंसलों की उड़ान के बूते शकुन पटेल ने अपने गांव के अलावा आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों दुर्जनपुर, कारीतलाई, टिकरिया, खजुरा, सिंगवारा, परसवारा, अमेहटा इलाकों में लगभग 370 समूहों का निर्माण कर डाला, जिसके जरिए बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार हासिल हो रहे हैं।
मौजूदा हालात में शकुन पटेल के चरी गांव की बात करें तो यहां 28 स्व सहायता समूह संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें 334 महिलाएं शामिल हैं। चरी गांव के 16 स्व-सहायता समूहों का रिवाल्डिंग फंड यानि चक्रीय कोष 1.84 लाख रुपये है। इसके अलावा समूहों के आजीविका में बढोतरी के लिए संगठन के जरिए सीआइएफ राशि 10.80 लाख रुपये है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शकुन पटेल के कुछ कर गुजरने के जज्बे ने कैसे गजब का कमाल कर दिखाया है। शकुन पटेल एक नजीर है, उन महिलाओं के लिए जो खुद को रसोई का एक हिस्सा मान कर पूरी जिन्दगी चूल्हा-चौका में खपा रही हैं। शकुन पटेल से सबक लेकर इलाके की हजारों महिलाओं ने एक नई जिन्दगी शुरू की है और वे आने वाले बेहतर कल को उमीदों के नजरिए से देख रही हैं।
काशीबाई ने महिलाओं को बनाया शिक्षित, बच्चों को किया सेहतमंद, सेवा, समर्पण और उत्कृष्ट कार्यों के लिए कई बार हुई हैं पुरस्कृत-
बच्चों के साथ हिल मिल कर पढ़ाई करवातीं ये तस्वीरें काशी बाई विश्वकर्मा की हैं। इन्हें 22 दिसम्बर 2016 में आंगनवाड़ी मे श्रेष्ठ काम के लिए प्रदेश स्तरीय पुरुस्कार देने की घोषणा की गई। आपको काशी बाई के बारे में एक खास बात बता दें कि जब काशी बाई ने आंगन बाड़ी में काम करना शुरू किया तो उस वक्त उनकी शिक्षा महज 12वीं क्लास तक थी। उस दरम्यान काम करते समय उनके मन में आया कि इस काम को और बेहतर तरीके से करने के लिए कम से कम ग्रेजुएशन तो कर ही लेना चाहिए। फिर क्या था, काशी बाई ने अपने पति को ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने की इच्छा बताई, उनके पति ने भी काशी बाई के ने प्रस्ताव का स्वागत कर दिया। रात-दिन एक कर काशीबाई ने बीए भी पास कर लिया। काशीबाई ने अपने गांव मे शिक्षा का अलख जगाना शुरू किया और गांव की अनपढ़ महिलाओं को शिक्षित करने के काम में जुट गईं। शुरुआती दौर में तो उन्हें परेशानी हुई लेकिन उन्होंने हार नही मानी। वक्त के साथ गांव के लोगों ने भी शिक्षा और सफ़ाई के महत्व को समझा। देखते ही देखते काशी बाई ने पूरे गांव को साक्षर बना डाला।
काशी के इन प्रयासों ने शासन को पुरस्कार देने के लिए मजबूर कर दिया और यहीं से जो पुरस्कारों का सिलसिला चला तो कारवां राष्ट्रपति से मिलने वाले पुरस्कार तक पहुंच गया। वर्ष 2016 में महज 2 दिनों की मेहनत से काशी बाई ने समग्र स्वच्छता मिशन के अंतर्गत गांव में चौपालें लगाकर 165 हितग्राहियों के आवेदन भरवाए और 90 घरों में शौचालय बनवा दिए। पूरे गांव में जल शुद्विकरण के अंतर्गत 15 हैंडपपों के पानी की जांच कराकर सोख्ता गड्ढे बनवाये गये। सुपोषण अभियान के अंतर्गत अतिकम वजन के 14 बच्चों के समुचित उपचार के बाद पोषण स्तर पर परिवर्तन कराना सामाजिक और रचनात्मक कार्य था, एक बात जो बेहद चौंकाने वाली है वो ये कि इनके आंगनवाड़ी केन्द्र का एक भी बच्चा कुपोषित नहीं है। जो अपने आप में बेहद चौंकाने वाला आंकड़ा है।
आपको काशी बाई विश्वकर्मा के बारे में एक और खास बात बताते हैं, वह ये कि कई बार इनके विभाग के अधिकारियों ने इनके केन्द्र का औचक निरीक्षण भी किया ताकि यह पता चल सके कि काशी बाई का केन्द्र वाकई सही चलता है या ये महज दिखावा है। आप जान कर चौंक जायेंगे कि हर बार छापे के बाद अधिकारियों का भरोसा बढ़ता चला गया। यही वजह है कि अधिकारी भी काशी बाई के इस जज्बे को सलाम करते हैं। काशी बाई एक मिसाल है, उन तमाम लोगों के लिए, जो सरकारी मशीनरी में खुद को मशीन का एक पुर्जा मान कर उतने ही दायरे मे सीमित हो जाते हैं। काशी बाई ने दुष्यन्त के उस लाइन को सच साबित कर दिया जिसमें कहा है कि ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता। एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ॥
बाधाओं को हराकर संगीता ने तैयार की नवनिर्माण की राह-
जिस हालात में पहुंच कर लोगों में सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है, उनसे जूझ कर एक नए मुकाम को हासिल करने का जज्बा रखने वाले विरले ही होते हैं। खास तौर पर अगर महिलाओं की बात करें तो लाखों में कोई एक महिला ही ऐसी मिलेगी, जिसे सहारा देने वाला भी कोई न हो तो भी वह तरक्की की एक नई इबारत लिख दे।
हिरवारा ग्राम पंचायत में रहने वाली संगीता बर्मन की जब शादी हुई तब उसके पति मजदूरी का काम करते थे। रोज मजदूरी का काम नहीं मिलने के चलते संगीता को परिवार चलाने में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। इस बीच संगीता के पति थेतानंद के साथ दुर्घटना हुई और वे दिव्यांग हो गए। अब संगीता के सामने आमदनी के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। हालात ऐसे बदतर हुए कि पति के ईलाज के लिए संगीता को अपने जेवर तक गिरवी रखने पड़े। एक तरफ़ दिव्यांग पति की देखभाल और दूसरी ओर परिवार की जिमेदारियां, संगीता के सामने चुनौतियां खड़ी कर रही थीं। तब संगीता ने 2018 में आस-पास की महिलाओं को समूह का फायदा समझाया और अष्टमी स्व-सहायता समूह का गठन किया। 1000 रुपये लोन से फीस जमा किया और तनाव मुक्त होकर समूह से 5000 रुपये की राशि उधार ली और सिलाई मशीन खरीद कर व्यापार की शुरुआत कर दी। उन्हें गांव के ही एक व्यक्ति ने कपड़े के थैले सिलने का काम दिया, जिसमें संगीता ने बिना रुके थैला सिलने के काम किया और पांच हजार का लोन चुकता किया। फिर पचास हजार लोन लेकर मिक्सचर मशीन खरीद ली। अब जिन भी लोगों को मिक्सचर मशीन की जरूरत होती वे लोग संगीता से संपर्क करने लगे, जिसमें 500 रुपये प्रति दिन की आमदनी आने लगी।
संगीता की मेहनत रंग लाई और उसने मिक्सचर मशीन के लिए उधार लिए गए पचास हजार के लोन को भी चुकता कर दिया। इस बीच लंबे ईलाज के बाद उसके पति भी ठीक होने लगे। संगीता ने अपने पति के लिए हार्डवेयर की दुकान खोलने का फ़ैसला लिया। संगीता ने एक बार फिऱ समूह से 1 लाख रुपये का लोन लिया और पति थेतानंद के लिए हार्डवेयर की दुकान खुलवा दी, लेकिन इसी बीच कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लॉकडाउन लागू कर दिया, जिसके चलते उसके सारे कारोबार प्रभावित होने लगे, लेकिन संगीता ने आपदा में अवसर की तलाश करते हुए एक बार फिर सिलाई मशीन निकाल ली और पूरे लॉकडाउन के दरमयान मास्क बना कर अच्छी आमदनी हासिल की।
लगातार तीन साल के मेहनत का ही नतीजा है कि संगीता के स्व सहायता समूह ने 1.50 लाख रुपये का सोना, 1.60 लाख रुपये की सेंट्रिंग, 30000 रुपये नकद यानि कुल 3.80 लाख रुपये की संपत्ति अर्जित की है। संगीता की खुद की मासिक आय 16000 रुपये हो गई है, जिसमें मछली पालन से दो हजार, हार्डवेयर की दुकान से पाँच हजार, सेंट्रिंग के काम से चार हजार रुपये कमा रही हैं।
वर्षा ने अपनाई डिजिटल इंडिया की राह, खुद पैरों पर खड़ी हुईं और गांव के लोगों को दी सहूलियतें-
ग्राम पंचायत बरछेंका निवासी वर्षा बर्मन अपने गांव में ही स्वरोजगार से जुड़कर खुद को सशक्त किया है। डिजिटल इंडिया योजना के तहत सीएससी महात्मा गांधी ग्राम सेवा केन्द्र स्थापित किया है। यह केन्द्र जहां ग्रामीणों को विभिन्न सुविधायें अपने ग्राम में ही उपलब्ध करा रही हैं। जिसके लिये पहले अक्सर ग्रामीणाों को गांव से कई किलोमीटर दूर विभिन्न कार्यालयों के चक्कर लगाकर परेशानियों का सामना करना पड़ता था। अब अधिकांश सुविधायें एक ही जगह सुगमता से मिल पा रही है।
इन सेवाओं में चाहे भूमि के खसरा व नक्शा की नकल हो, नामांतरण के लिये आवेदन हो या फिर मनरेगा की मजदूरी का भुगतान अथवा विभिन्न पेेंशन की राशि का भुगतान अब ग्रामीणों को आसानी से मिल रहा है। वर्षा भी इस स्वरोजगार को स्थापित कर खुद का और अपने परिवार का खर्च भी अब आसानी से चला पा रही है।
वर्षा ने बताया कि उन्होने अपने ग्राम के लगभग 50 से अधिक लोगों के बैंक खाते खोले हैं और उनका उपयोग करने संबंधी जानकारी से भी ग्रामीणों को दी है। इसके साथ ही गांव में ही उन्होने 400 आयुष्मान भारत योजना के कार्ड और 100 से ज्यादा पैन कार्ड भी उनके द्वारा बनाये गये हैं। वर्षा ने पूरी लगन और मेहनत के साथ आत्मनिर्भर होकर औरों के लिये भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
रंग लाई उषा की पहल, अब गांव में लोगोंं की मिल रही योजनाओं की जानकारी-
गांव में ही इंटरनेट से सारी दुनिया को जोड़ कर आत्मनिर्भर बनी हैं जिले के बहोरीबंद ब्लॉक के ग्राम पंचायत छपरा की निवासी ऊषा चौबे। उन्होने इन्टरनेट को ही अपनी आजीविका का साधन बनाया। जिससे स्वयं तथा अपने परिवार के लिये भी स्वरोजगार से जुड़कर आजीविका भी चला रही हैं।
ऊषा ने अपने गांव में ही इन्टरनेट से जुड़ी विभिन्न सेवायें ग्रामीणों को उपलब्ध करा रही है। उन्होने डिजिटल भारत योजना के सीएससी और महात्मा गांधी ग्राम सेवा केन्द्र अपने गांव में ही खोल रखा है। अब युवा हो या वृद्ध, दिव्यांग हो या महिलायें या फिर छात्र-छात्रायें, अब हर किसी के लिये ऊषा एक केन्द्र बन चुकी है। जिनके माध्यम से विभिन्न सेवायें हर वर्ग के लोगों को उनके गांव में ही सहजता से उपलब्घ हो रही हैं।