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ऐसे होती है पूजा
गुरुनानक वार्ड निवासी पं. कविता शर्मा ने बताया कि सिंधी समाज में सावन माह के कृष्ण की सप्तमी को जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पूर्व योगमाया की पूजा होती है। शीतला माता की सुबह से स्नान आदि के बाद पूजन शुरु होता है। पूजन के बाद मां को मीठे पकवान अर्पित करने के बाद आंचल में शीतला माता का प्रसाद स्वरूप ७ चने निगलते हैं। इससे संतान को दीघायु प्राप्त होती है और घर में संपन्नता आती है। इसके बाद रुई मां शीतला पर चढ़े सिंदूर को लगाकर कान में पहने हुए गहने से लपेट लिया जाता है।
पाकिस्तान के मेहड़ से आई हैं देवी
इस अनूठी मान्यता का पूजन गुरुनानक वार्ड निवासी पं. दिनेश शर्मा के यहां हर वर्ष होता है। यह मान्यता १९४८ से चली आ रही है। दिनेश शर्मा ने बताया कि उनके दादा घनश्याम दास शर्मा पाकिस्तान के मेहड़ शहर से शीतला माता को साथ में लेकर आए थे। पिछले ६९ साल से सप्तमी को मां की धूमधाम से उपासना होती है और इस मान्यता को पूरा किया जाता है। पूरे शहर भर से महिलाएं पूजन के लिए घर पर आती हैं और कान में पनड़ा पहनती हैं।