जरूर करें ये पांच-पांच प्राणायाम व योगासन
शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने की बात करें तो पांच-पांच प्रकार के प्राणायाम और योगासन प्रमुख हैं। पांच प्रकार के प्राणायाम में भस्त्रिका, कपालभाती, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, उज्जायी शामिल हैं। साथ ही पांच प्रकार के योगासन में मंडूकासन, वक्रासन, ताड़ासन, भुजंगासन, शशांकासन हैं। इनका नियमित अभ्यास करने से शरीर चुस्त-दुरूस्त होने के साथ शरीर स्वस्थ रहता है।
यह हैं प्राणायम के फायदे
भस्त्रिका प्राणायाम- शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ फेफड़े स्वस्थ रहते हैं और इसमें छिपे रोग दूर होते हैं। यह आमाशय तथा पाचक अंग को भी स्वस्थ रखता है। पाचन शक्ति में वृद्धि होने के साथ शरीर को स्फूर्ति मिलती है। इस क्रिया से सांस संबंधी परेशानी दूर होती है। उच्च रक्तचाप, हृदय, दमा, अल्सर व मिर्गी रोगों से पीडि़त लोग तथा गर्भवती महिलाएं इस आसान को नहीं करें। किसी भी आसान में सुखपूर्वक बैठने के साथ एक गहरी सांस लेते हुए पेट पर जोर देते हुए सांस छोड़े। इसे तीन से पांच मिनट तक करें।
कपालभाती प्राणायाम- कपालभाती प्राणायाम शरीर के लिए बेहद लाभकारी है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढऩे के साथ कब्ज, मोटापा, डाइबिटिज, दिमाग संबंधी, वजन, प्रजनन आदि संबंधी कई प्रकार की बीमारी में लाभ मिलता है। यह आतंरिक सिस्टम को मजबूत करने के साथ रोगों से लडऩे में सहायक होता है। आसन में शांत बैठने के बाद अपने अंदर के श्वास को बलपूर्वक तेजी से छोडऩा होता है। इसके करने से पेट पर झटका पड़ता है। एक सेकंड में एक बार अपनी शक्ति के अनुसार कर सकते हैं। हृदय रोग वाले रोगी इसे करने से बचें।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम-यह सबसे प्रमुख प्राणायाम माना जाता है। इसके अभ्यास से नाड़ी शोधन होने के साथ शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन शरीर को मिलता है। जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होने के साथ प्रसन्न प्रसन्न होता है। साथ ही असंख्य बीमारियों का नाश धीरे-धीरे होने लगता है। किसी भी आसन में बैठने के बाद अपने बाएं हाथ के अंगूठे से बांयी नाक के छिद्र को बंद करके, दायीं नाक के छिद्र को खोलकर इसके जरिए सांस छोड़े। दूसरी ओर से भी इस प्रकिया को दोहराएं।
भ्रामरी प्राणायाम-शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ हृदय और मानसिक रोग में लाभकारी है। अनिद्रा, डिप्रेशन, क्रोध को शांत करने में मददगार होता है। मन की चंचलता को दूर करने के साथ मन को एकाग्र करता है। पेट के विकारों को दूर करने के साथ मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती है। इससे मस्तिष्क के नसों को आराम मिलता है। किसी भी आसन में बैठने के बाद कानों को अंगुली से बंद कर ओम का उच्चारण धीरे-धीरे करना होता है।
ऐसे करें मंडूकासन
बज्रासन में बैठते हुए दोनों हाथों की मुठ्ठी बंद कर अंगूठे को अंगुलियों से अंदर दबाए। फिर दोनों मुठ्ठी को नाभि के दोनों ओर लगाकर श्वास बाहर निकालते हुए समाने की ओर झुकें और ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। फिर सांस को वापस लेते हुए अपने आसन में आए।
शशांकासन
बज्रासन में बैठने के बाद दोनों हाथों को उपर सांस भरते हुए उठाए। कंधों को कानों से सटा हुआ महसूस करें। फिर सामने की ओर झुकते हुए दोनों हाथों के आगे समानांतर फैलाते हुए सांस को बाहर निकाले और हथेलियों को भूमि पर टिका दें।
वक्रासन
दोनों पैरों को सामने फैलाते हुए हाथों को बगल में रखते हैं। कमर सीधी और निगाह सामने हों। दाएं पैर के घुटने को मोड़कर और बाएं पैर के घुटने की सीध में रखते हैं। उसके बाद दाएं हाथ को पीछे ले जाते हैं। गर्दन को धीरे-धीरे पीछे की ओर ले जाते हैं।
ताड़ासन
हाथ को अपने सिर से उपर की ओर सीधे ले जाएं। इसके बाद दोनों हाथ को पंजे को एक दूसरे से जोड़ कर रखने के साथ दोनों पैर के पंजो को सांस लेते हुए उठाएं।
भुजंगासन
पेट के बल लेटते हुए दोनों हाथ की कोहनी को सीने के आसपास रखने के साथ सांस भरते हुए आसमान की ओर देखने का प्रयास करें। सांस को छोड़ते हुए फिर वापस आ जाएं।