ट्रेन के कटनी पहुंचने के बाद जब वह कुछ भी नहीं बोल रहा था तब रामनरेश ने ट्रेन से उतारकर जीआरपी की मदद ली। जीआरपी ने रेलवे डॉक्टर बुलवाया तो उन्होंने राममिलन को मृत घोषित कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ सिस्टम का खेल। राममिशन के शव को जिला अस्पताल तक ले जाने के लिए रामनरेश के पास कोई साधन नहीं था। जीआरपी ने समाजसेवियों से मदद मांगी तो वाहन कहीं और भेजने की बात सामने आई।
परेशान रामनरेश अपने दोस्त राममिलन के शव को स्ट्रेचर पर रखकर ही शहर की प्रमुख गलियों से होते हुए करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर जिला अस्पताल पहुंचा। वहां रात भर मर्चुरी कक्ष में शव रखा और फिर आगे की कार्रवाई हुई।
इस बारे में जीआरपी थाना प्रभारी राकेश पटेल बताते हैं कि राममिलन का परीक्षण कर डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया तो शव वाहन के लिए फोन लगाए थे, लेकिन व्यवस्था नहीं हुई। हमारे यहां शव ले जाने के लिए स्ट्रेचर की ही व्यवस्था है।
नगर निगम के पूर्व नेता प्रतिपक्ष व पार्षद मौसूफ अहमद बिट्टू बताते हैं कि दो साल पहले नगर निगम में प्रमुखता से 5 शव वाहन और 10 मर्चुरी बाक्स की सुविधा उपलब्ध कराने की मांग रखी गई थी। यह अलग बात है कि जिम्मेदार लोग जनसुविधाओं से जुड़ी जरुरी मांगों पर ही ध्यान नहीं देते हैं।
आयुक्त सत्येंद्र धाकरे भी मानते हैं कि हर शहर में शव वाहन होता है, कटनी में नहीं है। इस बारे में प्रस्ताव बनाकर देने की बात कहने के साथ ही वे यह भी बताते हैं कि कोविड संक्रमण के समय अस्थाई तौर पर एक शव वाहन की व्यवस्था की थी, सूचना मिलने पर उससे मदद की जा सकती है।