script

जिनकी हाथों में बाघों की सुरक्षा की बागडोर, वहीं ज्यादा मौंते

locationकटनीPublished: Mar 25, 2018 06:16:56 pm

वन विकास निगम के कुंडम प्रोजेक्ट कम्पार्टमेंट 442 में मिला बाघिन का शव, ग्रामीणों का आरोप टाइगर मूवमेंट की सूचना के बाद भी सुरक्षा पर ध्यान नहीं

tiger death

फॉरेस्ट की फेंसिंग में फंसकर युवा बाघिन की मौत

कटनी. प्रदेश के टाइगर रिजर्व के आसपास क्षेत्र में बाघों की मौत की ज्यादा घटनाएं सामने आ रही है। टाइगर रिजर्व के बाहर सामान्य वनक्षेत्र में आते ही ये जंगल क्षेत्र बाघों के लिए मौत का कुआं साबित हो रहे हैं। जहां जीवन जीना बाघों की चुनौती साबित हो रहा है। वन विभाग की तार फेंसिंग में फंसकर ढाई साल की युवा बाघिन की मौत हो गई। बाघिन का शव वन विकास निगम के कुंडम प्रोजेक्ट अंतर्गत कक्ष क्रमांक 442 में 22 जनवरी की शाम बनेहरी गांव के समीप ग्रामीणों ने देखा। सूचना वन विभाग को दी गई। मंगलवार की दोपहर बाघिन के शव का पोस्टमार्टम बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. अनिल गुप्ता, वन्यप्राणी अनुसंधान केंद्र जबलपुर के डॉ. अमोल रोवड़े, डॉ. रंजीत हरने व डॉ. शिवम जार की टीम ने किया। मौत के कारणों की जांच के लिए बिसरा व अन्य सैंपल सागर और जबलपुर भेजा गया है। बनेहरी के ग्रामीणों ने बताया कि क्षेत्र में टाइगर का मूवमेंट दो माह से ज्यादा समय है। कई ग्रामीणों ने बाघ की दहाड़ सुनने के बाद जानकारी वन विभाग को दी गई थी। वन विभाग ने टाइगर मूवमेंट को गंभीरता से नहीं लिया और युवा बाघिन की मौत हो गई।
दो माह पहले बाघ का शिकार
7 नवंबर 2017 को वन विकास निगम के कुंडम प्रोजेक्ट अंतर्गत कक्ष क्रमांक 438 रोहनिया गांव के समीप युवा बाघ का शव मिला था। बाघ के शिकार मामले में वन विभाग ने ४ शिकारियों को गिरफ्तार किया था।
2017 में 26 इस साल तीसरी मौत
बाघों की मौत मामले में मध्यप्रदेश में बीते वर्ष टॉप पर रहा। 2017 में यहां सर्वाधिक 26 बाघों की मौत हुई। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में 18 व उत्तराखंड में 15 बाघों की मौत हुई थी। इस साल मध्यप्रदेश में तीन बाघों की मौत हो चुकी है। इसमें 22 जनवरी को कटनी के सहित 14 जनवरी को सिवनी जिले के बरघाट व 19 को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में बाघिन टी-1 का शिकार शामिल है।
– कुंडम प्रोजेक्ट कक्ष क्रमांक 442 में बाघिन का शव तार फेंसिंग में फंसा पाया गया। प्रथम दृष्टया टेरीटोरियल फाइट से मौत का अनुमान है। पीएम उपरांत मंगलवार की शाम शव को जलाया गया। जांच के लिए जबलपुर से टीएसएफ (डाग स्क्वायड) की टीम भी पहुंची है।
एनएस डुंगरियाल एपीसीसीएफ वन विकास निगम जबलपुर।

पत्रिका व्यू
यूं ही नहीं बनते टाइगर स्टेट

– वर्ष 2006 में मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट बना था। उसके बाद 11 साल बीत गए लेकिन दोबारा यह खिताब प्रदेश को नहीं मिला। मिले भी क्यों यहां बाघों के संरक्षण की कवायद खोखली जो है। बाघों की सुरक्षा में लापरवाही का क्रम टूट ही नहीं रहा। ताज़ा उदाहरण कटनी है। वन विकास निगम के कुंडम प्रोजेक्ट में टाइगर मूवमेंट की जानकारी विभाग के जिम्मेंदारों को थी, फिर भी सुरक्षा में चूक हो गई। दो माह पहले इसी क्षेत्र में एक बाघ का शिकार होने के बाद भी दूसरे बाघों के मूवमेंट को गंभीरता से नहीं लिया गया। बाघों की सुरक्षा में ऐसी लापरवाही कमोबेश पूरे प्रदेश में सामने आती रही है। यही कारण है कि 2010 में प्रदेश में 300 से बाघ घटकर 257 रह गए। चार वर्ष बाद 2014 में स्थिति सुधरी और बाघों की संख्या 308 पहुंची, लेकिन तब कर्नाटक 406 और उत्तराखंड 340 बाघों के साथ एमपी से आगे निकल चुके थे, और फिर मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट नहीं बन सका। बाघों की संख्या के मामले में देश में एमपी तीसरे नंबर पर है। अगला टाइगर स्टेट कौन होगा इसके लिए 5 फरवरी से गिनती शुरू होगी। वन्यप्राणी गणना की यह तारीख वन विभाग के जेहन में थी या नहीं इसका पता भी थोड़े दिन बाद लग ही जाएगा।

ट्रेंडिंग वीडियो