जब तक चायल संसदीय क्षेत्र इसका नाम था तब तक कांग्रेसी उम्मीदवार का यहां पर दबदबा रहा है। हालांकि 9 वीं लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस का यहां पर जी पतन शुरू हुआ वह आज तक जारी है। 1989 में हुए लोकसभा के आम चुनाव में राम निहोर राकेश यहां पर कांग्रेस के आखिरी विजयी उम्मीदवार हुए हैं। उसके बाद से अब तक के हुए सभी चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा है। पिछले कई लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार को 50,000 से अधिक मत नहीं मिल सके हैं। जिससे उनकी जमानत जप्त हुई है। कौशांबी लोकसभा सीट पर कांग्रेस को ऐसा कोई मजबूत उम्मीदवार भी नहीं मिल पा रहा है जिसके बल पर वह अपनी दमदार उपस्थिति लोकसभा चुनाव में दर्ज करा सकें। प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद इस बार कांग्रेस ने गिरीश चंद्र पासी पर दांव लगाया है।
गिरीश चंद पासी पिछले कई सालों से लगातार नेवादा ब्लाक के ब्लाक प्रमुख चुनते हुए चले आ रहे हैं। गिरीश पासी का दलित वोट बैंक पर तगड़ा प्रभाव माना जा रहा है। कौशांबी संसदीय सीट पर अब तक घोषित राजनीतिक दलों के तीन उम्मीदवार पासी बिरादरी से सामने आएहैं। ऐसे में यह दिलचस्प होगा की गिरीश पासी अपने ही बिरादरी के वोट बैंक पर कितना प्रभाव जमा पाएंगे। फिलहाल लगभग 30 सालों से सूखी पड़ी कौशांबी संसदीय सीट की इस बंजर धरती पर कांग्रेस एक बार फिर से अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए मैदान में उतरी है। 23 मई को यह स्पष्ट हो सकेगा कि कांग्रेस का जोश कितना कामयाब हुआ है।