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238 साल पुराना है कौशाम्बी का कुप्पी युद्ध, देखने को उमड़ता है जनसैलाब

locationकौशाम्बीPublished: Oct 01, 2017 10:57:49 am

Submitted by:

sarveshwari Mishra

राम-रावण के बीच का कुप्पी युद्ध देख रोमांच मे भर उठते हैं दर्शक
 

kuppi yuddha

कुप्पी युद्ध

कौशांबी. पुराने समय से आज तक में तमाम चीजे बदल गई लेकिन कौशाम्बी के दारानगर कस्बे में होने वाली रामलीला का कुप्पी युद्ध आज तक कायम है। हर साल दशहरे के दिन राम और रावण दलों के बीच कुप्पी (लोटे के आकार का डेढ़ किलो वजन का सामान) युद्ध देखने के लिए पड़ोसी जिलों के अलावा अन्य राज्यों से भी जन सैलाब उमड़ता है।
दारानगर का ऐतिहासिक दशहरा मेला लगभग 238 साल पुराना है और उतना ही पुराना है कुप्पी युद्ध। दशहरा मेला की शुरुआत आश्विनी मास की अमावस्या के दिन मुकुट पूजन से होती है जो 12वें दिन भरत मिलाप के साथ संपन्न हो जाती है। यहां का दशहरा अपनी मौलिकता के लिए देश भर में चर्चित है।
इस युद्ध में राम- रावण दल की सेनायें वास्तविक युद्ध करती है। जिसे देखने के लिए आसपास के इलाके से बड़ी तादात में लोग जमा होते है। कुप्पी युद्ध का रोमांच ही ऐसा होता है कि इसे देखने के लिए दर्शक खुद ब खुद मैदान में खिंचे चले आते हैं। दो दिवसीय कुप्पी युद्ध में पहले दिन काले कपड़ों में सजे रावण की सेना की जीत होती है तो दूसरे दिन लाल कपड़े में युद्ध करने वाले राम की सेना असत्य पर सत्य की जीत का विजय पर्व मानती है।
इस कुप्पी युद्ध में राम और रावण की दो सेनाएं आमने-सामने होती हैं। भगवान राम की सेना लाल और रावण की सेना काले कपड़े में होती है। आमना-सामना होने पर दोनों सेनाओं के बीच प्लास्टिक की कुप्पी से युद्ध होता है। आयोजकों के सिटी बजाते ही राम व रावण दोनों ही दल के सेनानी जिस तरह एक दूसरे पर टूट पड़ते है उसे देख कर दर्शक रोमांच से भर उठते हैं।

दो दिन में सात बार होता है राम-रावण की सेना में युद्ध
दारानगर की रामलीला में कुप्पी युद्ध के लिए दो दिन में 7 लड़ाई दोनों दलों के बीच होती है। पहले दिन चार चरणों में लड़ाई होती है। जिसमें चारों लड़ाई रावण की सेना जीतती है। दूसरे दिन तीन लड़ाई होती है। यह तीनों लड़ाई जीत कर राम की सेना विजय पर्व विजय दशमी मानती है। दोनों दिन के सभी साथ युद्ध दस-दस मिनट के होते है। राम व रावण दोनों ही दल में 25 -25 सेनानी होते है। युद्ध इतना विकराल होता है कि देखने वालो के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। युद्ध में सेनानी घायल भी हो जाते है लेकिन रण भूमि की मिट्टी ही इनके लिए दवा का काम करती है। सेनानी बताते है कि युद्ध में शामिल होना उनके लिए गौरव की बात है। पहले दिन होने वाले चार कुप्पी युद्द में रावण की सेना श्री राम की सेना पर भारी पड़ती है और उन्हें हराने का पूरा प्रयास करती है। दर्शक बताते हैं कि ऐसा कुप्पी युद्द कहीं और देखने को नहीं मिलता है इसलिए वह यहां खींचे चले आते हैं।

रामलीला आयोजक इस युध्द को सजीव बनाने के लिए महीनों मेहनत करते है। महीनों पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। बल्लियों से घिरे बड़े मैदान में युद्ध के दौरान दोनों दल की सेना इस कदर बेकाबू हो जाती है कि उन्हें सम्हालना आयोजकों के लिए कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। एक कुप्पी युद्ध के सम्पन्न होने पर मेघनाथ वध और कुम्भकर्ण वध की भी लीलाये होती हैं। दारानगर की रामलीला का इतिहास 238 वर्ष पुराना है। यहां जैसा कुप्पी युद्ध कहीं और नहीं होता। आयोजक बताते है कि जहां हमारा समाज ऊंच-नीच जाति- धर्मं के नाम पर बंट रहा है वही यहां के इस रामलीला मैं पिछले 238 सालों से रावन की दलित सेना व भागवान राम की सेना पल भर के लिए भले ही एक दूसरे के दुश्मन बन जाते है लेकिन पल भर में यही आपस में गले मिल भाई चारे कि मिशाल कायम करते हैं।

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