इतना ही नहीं बसपा पदाधिकारियों ने प्रचार अभियान से भी किनारा कर रखा था। कभी बसपा का मजबूत गढ़ कहा जाने वाला कौशांबी अब भाजपाइयों के कब्जे में है। जिले की तीनों विधानसभा व संसदीय सीट पर भाजपा का झंडा बुलंद हो रहा है। लोकसभा चुनाव में तमाम राजनीतिक विश्लेषकों को झूठा साबित करते हुए भाजपा के विनोद सोनकर दोबारा जीत दर्ज कर संसद पहुंच गए। परिणाम आने के बाद सपा-बसपा के लोग अब समीक्षा में जुटे हुए हैं। कार्यकर्ता स्तर पर जो चर्चा हो रही है उसके मुताबिक समाजवादी पार्टी के इंद्रजीत सरोज के हार का कारण कौशांबी में बसपा की जिला इकाई की बेरुखी रही है। पूरे चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी के जिला अध्यक्ष महेंद्र गौतम समेत दूसरे पदाधिकारियों ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ एक भी दिन जनता के बीच दिखाई नहीं दिए।
इतना ही नहीं इंद्रजीत सरोज की नुक्कड़ सभाओं में भी बसपा का कोई पदाधिकारी दिखाई नहीं देता था। सपाइयों ने अपने आलाकमान से कई बार यह मांग रखी थी कि बसपा के शीर्ष पदाधिकारियों की मीटिंग कौशांबी लोकसभा क्षेत्र में कराई जाए। हालांकि बसपा के किसी भी पदाधिकारी ने कौशांबी लोकसभा क्षेत्र में मीटिंग करना मुनासिब नहीं समझा। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की जनसभा के अलावा किसी दूसरे अवसर पर पूरे चुनाव के दौरान बसपा जिलाध्यक्ष महेंद्र गौतम दिखाई नहीं दिए। चर्चा तो यह भी है कि इंद्रजीत सरोज से बसपा सुप्रीमो मायावती की नाराजगी के चलते जिले में उनके कार्यकर्ताओं ने दूरी बनाई थी। चुनाव हारने के बाद अब यह बात तेजी से हो रही है कि यदि बसपा ने इंद्रजीत सरोज का साथ दिया होता तो कौशांबी का परिणाम उनके पक्ष में रहता। फिलहाल पछताने के सिवा सपा के पास कुछ नहीं रह गया।