आर्थिक रूप से काफी उपयोगी होने के कारण किसान अब आम, अमरूद, जामुन, शीशम के बजाय यूकेलिप्टस की बागवानी को अपना रहे हैं। हर प्रकार के मौसम में बढ़वार की क्षमता, सूखे की दशाओं को झेल लेने की शक्ति, कम लागत व आसानी से उपलब्ध हो जाने के कारण किसान तेजी से यूकेलिटस की बागवानी को अपनाते जा रहे हैं। निर्माण कार्यों की इमारती लकड़ी के अलावा फर्नीचर, प्लाईवुड, कागज, औषिधि तेल, ईंधन के रूप में यूकेलिप्टस की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। बाजार में अच्छी मांग होने के कारण लोग दूसरे फलदार पेड़ के बागों के बजाय यूकेलिप्टस की खेती को तवज्जो दे रहे हैं।
बीते पांच सालों के दौरान ही सैकड़ों हेक्टेयर खेतों में यूकेलिप्टस के बाग लगाए जा चुके हैं। पेड़ सीधा ऊपर जाने से लोग खेतों की मेड़ों घरों के बगीचों आदि में इसे लगा देते हैं। एक अनुमान के मुताबिक सिराथू व कड़ा ब्लॉक में ही पिछले पांच वर्षों में 200 से अधिक किसान यूकेलिप्टस की बागवानी को अपना चुके हैं। कड़ा, सिराथू, मंझनपुर, मूरतगंज, सरसवां, नेवादा, चायल, कौशाम्बी ब्लॉकों में भी यूकेलिप्टस के पेड़ों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। इसके चलते चंद पैसों का मुनाफा तो जरूर हो रहा है लेकिन पर्यावरण को होने वाली भारी नुकसान की अनदेखी की जा रही है। तीन गुना अधिक पानी का खर्च कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि यूकेलिप्टस के पेड़ में दूसरे अन्य पेड़ों की अपेक्षा तीन गुना पानी अधिक सोखने की क्षमता होती है। इसके अलावा इनकी पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया भी तेजी से होती है। जड़ें मिट्टी में सीधी बहुत गहराई तक जाकर पानी खींचती हैं।
पेड़ों की संख्या अधिक होने पर क्षेत्र के भूगर्भ जलस्तर में कमी आ सकती है। इसके अलावा अनाज उत्पादन वाले खेतों में इसे लगाने से मिट्टी की उवर्रता को भी नुकसान पहुंचता है। सामान्य जमीन में न लगाएं विशेषज्ञों के मुताबिक यूकेलिप्टस के पेड़ों को किसान सामान्य खेतों में लगाने से बचें। इसे नहरों के किनारे की जमीन, तालाब, झील, नदियों के किनारे लगाया जा सकता है। लेकिन जनपद में नहर ही नही आती और न ही तालाबों में पानी है।
कुल क्षेत्रफल की गणना नहीं कौशाम्बी डीएफओ पी के सिंहा ने बताया कि कुल वन क्षेत्र की गणना तो की जाती है, इसमें यूकेलिप्टस का अलग से सर्वेक्षण नहीं किया जाता है। इसलिए इसलिए इसके वर्तमान वास्तविक क्षेत्रफल का आंकडा विभाग के पास मौजूद नहीं है। यूकेलिप्टस पेड़ के ज्यादा पानी सोखने में कुछ भी अस्वाभविक नहीं है।