चिल्फीघाटी के पास ही ग्राम बेंदा(राजबेंदा) है, जो पुरातात्विक स्थल है। यहां पर कई प्रतिमाएं ग्रामीणों को मिल चुकी है। पुरातत्व विभाग के पुरातत्ववेत्ताओं ने बेंदा स्थित पुरातात्विक स्थल का निरीक्षण भी किया। यहां पर मौजूद खंडहरनुमा शिव मंदिर 9-10वीं शताब्दी का माना जाता है। यहां तीन स्थानों पर इस तरह के स्थान हैं जहां पर पत्थर मौजूद हैं। बिखरी पड़ी मूर्तियों में पत्थरों से बना हांडी, गुम्बज, चकरी, भगवान शिव-पार्वती व गणेश की प्रतिमा विद्यमान हैं। बावजूद इन्हें संरक्षण नहीं मिल सका है। देखरेख के अभाव में मंदिर खंडर में तब्दील हो चुका है।
पत्थरों से धून
कवर्धा से 20 किमी दूर रबेली ग्राम में जहां 150 लोगों की बारात के समूह में नाचते-गाते हुए पत्थर पर भित्तियां अंकित थे। यह १५वीं-१६वीं शताब्दी के थे, लेकिन संरक्षण नहीं मिल सका। लघु जलाशय निर्माण के दौरान तोडफ़ोड़ हो गई। कुछ पत्थर की चोरी हो गई। पुरातत्व जानकार के अनुसार कुछ पत्थर आज भी हैं जिसे पीटने से बांसुरी की तरह धून सुनाई देती है। इसे सहेजनी की आवश्कता है लेकिन विभाग द्वारा ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।
मुख्यालय में म्यूजियम जरूरी
जिला पुरातत्व समिति के सदस्य आदित्य श्रीवास्तव ने बताया कि जिलेभर में जहां पर भी प्रतिमाएं व पुरातात्विक अवशेष बिखरे हैं उन्हें सुरक्षित रखने की जरूरत है। क्योंकि लगातार चोरी हो रहे हैं, खंडित हो रहे हैं। इसके लिए जिला मुख्यालय में म्यूजियम की आवश्यकता है। जहां पर अवशेषों को रखे, ताकि स्थानीय लोगों के अलावा भ्रमण में आने वाले सैलानी भी इनका अवलोकन कर सके और इसकी जानकारी मिले। इसके लिए कवर्धा पुराना कचहरी का उपयोग किया जा सकता है।