scriptजंगलों में बिखरे पड़े 9वीं शताब्दी के पुरातात्विक अवशेष | 9th century archaeological remains scattered in forests | Patrika News

जंगलों में बिखरे पड़े 9वीं शताब्दी के पुरातात्विक अवशेष

locationकवर्धाPublished: May 23, 2022 11:48:44 am

Submitted by:

Yashwant Jhariya

भोरमदेव मंदिर और पचराही उत्खनन से साबित हो चुका है कि जिले में और भी पुरातात्विक स्थल है। इसके पूर्व भी जिले में कई सदियों पुरानी प्रतिमाएं और पुरातात्विक अवशेष मिल चुके हैं, लेकिन दुखद है कि पुरात्व विभाग इन्हें संरक्षण नहीं दे पा रहा और न ही जिला प्रशासन इनकी देखरेख कर पा रहे हैं।

जंगलों में बिखरे पड़े 9वीं शताब्दी के पुरातात्विक अवशेष

जंगलों में बिखरे पड़े 9वीं शताब्दी के पुरातात्विक अवशेष

कवर्धा.
पंडरिया विकासखंड के ग्राम मोतेसरा में तालाब किनारे एक प्रतिमा है जिसे ब्रह्मा, वामदेव(त्र्यंबकेश्वर) माना जाता है। यह प्रतिमा चतुर्मुख है। पुरातत्व के जानकार इसे 3 से 6वीं शताब्दी का मानते हैं। केवल सिर के अवशेष हैं जो पूरी तरह से काले पत्थर का है। बावजूद इस प्रतिमा को संरक्षण नहीं मिल सका है, जबकि यह राज्य की सबसे पुरानी प्रतिमा व पुरावशेष हो सकती है।
इसी तरह कबीरधाम जिले के विभिन्न स्थानों पर और भी पुरातात्विक स्थल व ऐतिहासिक प्रतिमाएं, भित्तियां, गुफा और रॉक पेंटिंग मौजूद है, बावजूद इन्हें सहेजने और सुरक्षित रखने कोई पहल ही नहीं की गई। पुरातत्व विभाग की अनदेखी का ही नतीजा है कि आज छेरकी महल जैसे मंदिर में दरार पड़ चुकी है। पचराही में खंडित प्रतिमाएं बिखरे पड़े हैं। इसके अलावा यहां पर दोबारा खुदाई ही नहीं किया गया, जबकि यहां पर अभी कई ऐतिहासिक राज खुल सकते हैं।
अद्भुत 13वीं शताब्दी का सती स्तंभ
कवर्धा विकासखंड के ग्राम गुढ़ा में 13वीं शताब्दी का सती स्तंभ मौजूद है। एक बड़ा, दो छोटे स्तंभ आज भी अपने स्थान पर मौजूद है, जबकि यहां पर करीब 12 स्तंभ थे, लेकिन कई स्तंभ खंडित हो चुके हैं। स्तंभ में प्रतिमाएं अंकित हैं। पूर्व में इस पर पुरातत्व विभाग द्वारा कभी ध्यान ही नहीं दिया गया, जिसके कारण यह खंडित हो गए। जबकि यह स्तंभ अपने आप में नायाब हैं क्योंकि इस तरह के स्तंभ बमुश्किल ही कहीं-कहीं मौजूद हैं।
सबसे पुराना शिव मंदिर
चिल्फीघाटी के पास ही ग्राम बेंदा(राजबेंदा) है, जो पुरातात्विक स्थल है। यहां पर कई प्रतिमाएं ग्रामीणों को मिल चुकी है। पुरातत्व विभाग के पुरातत्ववेत्ताओं ने बेंदा स्थित पुरातात्विक स्थल का निरीक्षण भी किया। यहां पर मौजूद खंडहरनुमा शिव मंदिर 9-10वीं शताब्दी का माना जाता है। यहां तीन स्थानों पर इस तरह के स्थान हैं जहां पर पत्थर मौजूद हैं। बिखरी पड़ी मूर्तियों में पत्थरों से बना हांडी, गुम्बज, चकरी, भगवान शिव-पार्वती व गणेश की प्रतिमा विद्यमान हैं। बावजूद इन्हें संरक्षण नहीं मिल सका है। देखरेख के अभाव में मंदिर खंडर में तब्दील हो चुका है।
पत्थरों से धून
कवर्धा से 20 किमी दूर रबेली ग्राम में जहां 150 लोगों की बारात के समूह में नाचते-गाते हुए पत्थर पर भित्तियां अंकित थे। यह १५वीं-१६वीं शताब्दी के थे, लेकिन संरक्षण नहीं मिल सका। लघु जलाशय निर्माण के दौरान तोडफ़ोड़ हो गई। कुछ पत्थर की चोरी हो गई। पुरातत्व जानकार के अनुसार कुछ पत्थर आज भी हैं जिसे पीटने से बांसुरी की तरह धून सुनाई देती है। इसे सहेजनी की आवश्कता है लेकिन विभाग द्वारा ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।
मुख्यालय में म्यूजियम जरूरी
जिला पुरातत्व समिति के सदस्य आदित्य श्रीवास्तव ने बताया कि जिलेभर में जहां पर भी प्रतिमाएं व पुरातात्विक अवशेष बिखरे हैं उन्हें सुरक्षित रखने की जरूरत है। क्योंकि लगातार चोरी हो रहे हैं, खंडित हो रहे हैं। इसके लिए जिला मुख्यालय में म्यूजियम की आवश्यकता है। जहां पर अवशेषों को रखे, ताकि स्थानीय लोगों के अलावा भ्रमण में आने वाले सैलानी भी इनका अवलोकन कर सके और इसकी जानकारी मिले। इसके लिए कवर्धा पुराना कचहरी का उपयोग किया जा सकता है।
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