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बांस के तीर व गद्दे के टारगेट पर निशाना साध रहे तीरंदाजी के खिलाड़ी

locationकवर्धाPublished: Oct 07, 2018 11:37:30 am

Submitted by:

Panch Chandravanshi

एक तरफ शासन खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार पलिता लगाने में तुले रहते हैं।

Archery players

Archery players

कवर्धा. एक तरफ शासन खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार पलिता लगाने में तुले रहते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण वनांचल के शासकीय एकलव्य आवासीय विद्यालय तरेगांव जंगल में देखने को मिल रहा है।
शासन के महत्वकांक्षी योजना के तहत बैगा बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोडऩे के लिए वनांचल तरेगांव में एकलव्य आवासीय विद्यालय संचालित हो रही है, लेकिन सुविधा के अभाव में यहां के होनहार बच्चे बेहतर खेल का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद भी खिलाड़ी कड़ी मेहनत कर रहा है। तीरंदाजी के प्रति विद्यार्थियों का ऐसा लगाव देखने को मिल रहा कि सुविधा व अभावों के बीच विद्यार्थी तीरंदाजी को आगे बढ़ते हुए लक्ष्य को भेद रहे हैं। यहां अगर खिलाडिय़ों को बेहतर सुविधा प्रदान किया जाए तो तीरंदाजी से क्षेत्र के साथ प्रदेश का नाम रौशन कर सकता है। लेकिन जिम्मेदारों के ओछी सोच के चलते खिलाडिय़ों कड़ी मेहनत में ग्रहण लग रहा है। बिना खेल सामग्री व कोच के खिलाड़ी आगे कैसे बढ़ पाएंगे। विभाग को चाहिए कि विद्यालय को खेल सामग्री उपलब्ध कराए। ताकि बच्चे अपनी प्रतिभा को निखार सके। इसके कारण उन्हे कोई सुविधा नहीं मिल रही है।
कोच न खेल सामग्री
एकलव्य विद्यालय में तीरंदाजी खेल के लिए सामग्री भी विभाग उपलब्ध कराने में नाकाम साबित हो रही है। जबकि विद्यालय को प्रति वर्ष यहां लाखों रुपए का बजट प्राप्त होता है। इसके बाद भी खिलाडिय़ों को खेल सामग्री मिल पाई है और न ही कोई अन्य सुविधा। ऐसे में खिलाडिय़ों को चार साल पहले जो खेल मिली थी उसे से काम चलना पड़ रहा है। इसके बाद आज तक तीरंदाजी का खेल के लिए को ट्रैक सूट, जूता-मोजा, दास्ताना और भी खेल सामग्री नहीं मिली है। तीरंदाजी (आरचरी सेट), एसे (तीर), बटरस (तारगेट) कुछ भी सही सलामत नहीं है। इसके बाद भी इस खेल को बड़ी मेहनत से अंजाम देने में लगे हैं।
न तीर न बटरस
तीरंदाजी के प्रति लगाव ऐसा की विद्यालय के छात्रों ने खुद के व्यय से तीरंदाजी (आरचरी) सेट खरीदा है। उसी से सभी बच्चे अभ्यास कर रहे हैं। वहीं बच्चे तीर के लिए बॉस उपयोग करते हैं, जिसे छात्रों ने खुद ही अपने हाथ से बनाया है। बटरस (तारगेट) नहीं होने के कारण स्कूल के फटे पुराने गद्दे को बोरी में भरकर कागज में लक्ष्य चिन्हांकित निशाना साधते हैं।
एक के बाद एक साध रहे निशाना
तीरंदाजी में तीन जोन होते हैं। पहला सीनियर जोन, दूसरा मिनी और तीसरा जूनियर होता है। प्रत्येक जोन में चार-चार खिलाड़ी एक साथ लक्ष्य साधते हैं। लेकिन खेल सामग्री के अभाव में सभी खिलाड़ी एक साथ लक्ष्य को न साधकर बारी-बारी से निशाना साधते हैं। सीनियर ज़ोन में दूरभाष सिंह धुर्वे 11 वीं, जावेंद्र सिंह मेरावी 11वीं, राजेन्द्र सिंह 11वीं, यशवंत परते 11 वी है। वहीं जूनियर जोन में इकेश्वर धुर्वे 10 वीं, रूपेंद्र धुर्वे 10 वीं, शंकर पन्द्रे 10 वीं, चेतन धुर्वे 10 वीं के छात्र है। मिनी ज़ोन में ढाल सिंह धुर्वे 8 वीं, देवेश खुसरे 8 वीं, देवप्रसाद 8 वीं, टूकेश्वर 7 वीं के साथ अन्य खिलाड़ी प्रतिदिन कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इन खिलाडिय़ों को खेल सामग्री के साथ-साथ कोच की भी जरुरत है, जो इन्हे प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के खेल के लिए तैयार कर सके।
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