कवर्धा

वनांचल में हरासोना एकत्रित करने में जुटे क्षेत्र के बैगा व आदिवासी

बोड़ला और पंडरिया यह फल व बीज मुख्य रूप से बोड़ला और पंडरिया के घने जंगल में पाए जाते हैं। इसे एकत्रित कर बेचने का कार्य मुख्यत: बैगा और आदिवासी वर्ग ही करते हैं।

कवर्धाMay 11, 2019 / 12:31 pm

Panch Chandravanshi

Bags and tribals from the area gathered in Harasona

कवर्धा. इन दिनों जिले के वनवासी व ग्रामीण वनोपज एकत्रित करने में जुट चुके हैं। इसमें मुख्य रूप से पंडरिया और बोड़ला ब्लाक के वनांचल में बैगा-आदिवासी पूरे परिवार के साथ लगे हुए हैं।
गर्मी के दिनों में वनांचल में निवासरत ग्रामीण, जो खेती-किसानी नहीं करते वह वनोपज एकत्रित करते हैं। जिले में मुख्य रूप से महुआ बीज, साल बीज, चिरौजी फली(चार), महुआ फूल, चिरायता, माउल पत्ता, हरड़ा(हर्रा) का छिलका सहित कई प्रकार के बीज शामिल है। यह फल व बीज मुख्य रूप से बोड़ला और पंडरिया के घने जंगल में पाए जाते हैं। इसे एकत्रित कर बेचने का कार्य मुख्यत: बैगा और आदिवासी वर्ग ही करते हैं। वहीं शासन द्वारा 15 लघु वनोपज के लिए समर्थन मूल्य भी तय किए हैं, ताकि वनांचन के बैगा-आदिवासियों को लाभ हो सके। इन कच्चे लघु वनोपजों को एकत्रित कर बोक्करखार, चिल्फी, कुकदूर सहित अन्य प्रमुख स्थानों पर स्व सहायता समूह और समितियों को बेचते हैं।
वनोपज का बोनस भी मिलेगा
शासन द्वारा कच्चे लघु वनोपज का दर निर्धारित किया गया है। समूह द्वारा निर्धारित दर पर ही इसकी खरीदी किया जाएगा। वहीं इस बार सभी वनोपज के दाम में बढ़ोतरी की गई है। साथ बोनस का भी प्रावधान किया गया है। वहीं कुल्लू गोंदा, रंगीनी लाख और कुसमी लाख में शासन द्वारा बोनस भी दिया जाएगा। बीज संग्रहकों को बिक्री के कुछ माह बाद बोनस दिया जाएगा।

शासन द्वारा अलग-अलग दर निर्धारित
बीजयुक्त इमली को इस बार ३१ रुपए प्रति किलो की दर से खरीदा जाएगा। इसी तरह चिरौंजी गुठली १०९ रुपए, कुल्लू गोंद १२०, बहेड़ा १७, चरोटा बीज १४, साल बीज २०, हर्रा १५, नागर मोथा २७, बेल गुदा २७, रंगीनी लाख १५०, महुआ बीज २५, कुसमी लाख २२५, शहद १९५, काल मेघ ३३ और फूल झाडू ३० रुपए प्रति किलो दर से बिक्री होगी। इस तरह शासन द्वारा निर्धारित दर पर वनोपज बेच सकेंगे। इससे वनोपज एकत्रित करने वाले बैगा आदिवासियों को लाभ मिलेगा।
क्षेत्र में दलाल भी
समूह द्वारा बीजों की छंटनी कर अन्य जिलों में भेजा जाता है। यहां उन्हें निर्धारित मूल्य मिलता है। यह मूल्य इनकी मेहनत की अपेक्षा कम रहती है, लेकिन इसके अलावा ग्रामीणों के पास इन्हें अन्य स्थान पर बेचने का कोई जरिया भी नहीं है। क्योंकि क्षेत्र में दलाल भी सक्रिय है, जो और भी कम दर पर वनोपज की खरीदी करने की जुगत में रहते हैं।
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