scriptभोरमदेव शिवलिंग और जलहरि में लगेगा 21 किलो चांदी का कव्हर, राजस्थान के विशेष कारीगरों को दिया ऑर्डर | Bhoramdev Shivling and Jalhari will have 21 kg silver cover | Patrika News

भोरमदेव शिवलिंग और जलहरि में लगेगा 21 किलो चांदी का कव्हर, राजस्थान के विशेष कारीगरों को दिया ऑर्डर

locationकवर्धाPublished: Sep 07, 2021 12:22:42 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

Bhoramdeo Temple Kawardha: शिवलिंग और जलहरि को 21 किलो चांदी से कव्हर किया जाएगा। जिस पर शेषनाग भी बना होगा। पहले भी जो चांदी का कव्हर लगा था वह अब जीर्ण-शीर्ण हो गया है।

भोरमदेव शिवलिंग और जलहरि में लगेगा 21 किलो चांदी का कव्हर, राजस्थान के विशेष कारीगरों को दिया ऑर्डर

भोरमदेव शिवलिंग और जलहरि में लगेगा 21 किलो चांदी का कव्हर, राजस्थान के विशेष कारीगरों को दिया ऑर्डर

कवर्धा. कवर्धा के ऐतिहासिक भोरमदेव शिवमंदिर में विराजित शिवलिंग को सहेजने की कवायद शुरू हो गई है। नए सिरे से शिवलिंग और जलहरि को 21 किलो चांदी से कव्हर किया जाएगा। जिस पर शेषनाग भी बना होगा। पहले भी जो चांदी का कव्हर लगा था वह अब जीर्ण-शीर्ण हो गया है। इसलिए नए सिरे से इस पर कार्य किया जा रहा है।
राजस्थान के कारीगर बनाएंगे
भोरमदेव शिवमंदिर की महिमा और महत्ता दूर-दूर तक फैली है। यही वजह है कि यहां सालभर बड़ी संख्या में श्रद्वालु आते हैं। जलाभिषेक और रूद्राभिषेक निरंतर चलते रहता है, जिसके चलते शिवलिंग के क्षरण की बात सामने आई थी। अब 21 किलो की चांदी से शिवलिंग और जलहरि को ढका जाएगा। राजस्थान के कारीगर इसे बनाएंगे, जिसके लिए ऑर्डर दे दिया गया है।
शुभ मुहूर्त में करेंगे स्थापित
डेढ़ से दो माह के बीच चांदी की इस जलहरि और शेषनाग को शुभ-मुहुर्त में स्थापित किया जाएगा। श्रद्वालुओं की मदद से इसे मंदिर को समर्पित किया जा रहा है। भोरमदेव मंदिर के पुजारी आशीष पाठक ने बताया कि भगवान भोलेनाथ सभी की मनोकामना पूरी करने वाले हैं। इसलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। पूजा-पाठ आराधन की जाती है। मंदिर के शिवलिंग को बचाने उस पर नए सिरे से चांदी का कव्हर लगाया जा रहा है।
भोरमदेव शिवलिंग और जलहरि में लगेगा 21 किलो चांदी का कव्हर, राजस्थान के विशेष कारीगरों को दिया ऑर्डर
भोरमदेव मंदिर, कवर्धा

भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहाँ मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है।
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।
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