मिडिल स्कूल नहीं
आज के समय में शिक्षा के लिए लोगों को दूर तक सफर तय नहीं करना पड़ता। शिक्षा के क्षेत्र में जिला बेहतर तरक्की कर चुका है। पहले गिनती के ही लोग शिक्षित होते थे। यहां पर मिडिल स्कूल तक नहीं था। प्राथमिक स्कूल वह भी एक-दो। आगे की पढ़ाई के लिए लोगों को रायपुर और राजनांदगांव जाना पड़ता था। आजादी के बाद यह कवर्धा जनपद बना। पहले शहर केवल कचहरी पारा, गुप्ता पारा, ठाकुर पारा तक ही सिमटा हुआ था।
शहर और जंगल
आठ दशक पूर्व सरदार पटेल मैदान से जंगल प्रारंभ हो जाता था। आदर्श नगर जहां पर बसा है वहां पहले हाकी का मैदान था। शहर के बच्चे वहीं जाकर अभ्यास करते थे। बूढ़ा महादेव मंदिर के पीछे महल होने के अवशेष बिखरे हुए थे। रेवाबंध के पास पहले पोस्ट आफिस हुआ करता था। वर्तमान जैन मंदिर के सामने भी महल हुआ करता था। बस स्टैण्ड के पास हैण्डपंप था अधिकतर लोग वहां तक पानी भरने के लिए जाते थे।
आज के समय में शिक्षा के लिए लोगों को दूर तक सफर तय नहीं करना पड़ता। शिक्षा के क्षेत्र में जिला बेहतर तरक्की कर चुका है। पहले गिनती के ही लोग शिक्षित होते थे। यहां पर मिडिल स्कूल तक नहीं था। प्राथमिक स्कूल वह भी एक-दो। आगे की पढ़ाई के लिए लोगों को रायपुर और राजनांदगांव जाना पड़ता था। आजादी के बाद यह कवर्धा जनपद बना। पहले शहर केवल कचहरी पारा, गुप्ता पारा, ठाकुर पारा तक ही सिमटा हुआ था।
शहर और जंगल
आठ दशक पूर्व सरदार पटेल मैदान से जंगल प्रारंभ हो जाता था। आदर्श नगर जहां पर बसा है वहां पहले हाकी का मैदान था। शहर के बच्चे वहीं जाकर अभ्यास करते थे। बूढ़ा महादेव मंदिर के पीछे महल होने के अवशेष बिखरे हुए थे। रेवाबंध के पास पहले पोस्ट आफिस हुआ करता था। वर्तमान जैन मंदिर के सामने भी महल हुआ करता था। बस स्टैण्ड के पास हैण्डपंप था अधिकतर लोग वहां तक पानी भरने के लिए जाते थे।