कवर्धा

75 वर्षों में दशा-दिशा बदली

आज जो कवर्धा शहर में जो सरदार पटेल मैदान है वह कभी पेड़-पौधों से घिरा हुआ होता था। लोग उसके पार जाने से कतराते थे। जंगली-जानवर तो अंबेडकर चौक तक पहुंच जाते थे। शहर भी चार मोहल्ले में सिमटा हुआ था और आबादी भी मुश्किल से चार हजार थी। यह तस्वीर आज से ७५ वर्ष पुराने कवर्धा की है, जो पूरी तरह से बदल चुका है।

कवर्धाAug 14, 2022 / 08:43 pm

Yashwant Jhariya

75 वर्षों में दशा-दिशा बदली

कवर्धा. नगर में ऐसे भी बुजुर्ग हैं, जो आठ दशक पुराने कवर्धा से वाकिफ हैं। उनके अनुसार उस समय कवर्धा में गिनती के छप्पर वाले घरों के अलावा कुछ भी नहीं था। कवर्धा की गिनती गांवों में होती थी। एक सड़क भी नहीं थी। रायपुर जाने के लिए १९ किमी की दूरी तय कर ग्राम अगरी तक जाते थे। वहां से सड़क बनी थी, जहां से रायपुर के लिए बस चलती थी। सड़कों पर बैलगाड़ी को नहीं चलने दिया जाता था, ताकि सड़क खराब न हो।
कवर्धा शहर पूरी तरह से बदल चुका है, नहीं बदला है तो केवल शहर के हृदय स्थल पर स्थित जय स्तंभ। गांधी मैदान में जय स्तंभ को वर्ष 1947 में आजादी के उपलक्ष्य में बनाया गया था, तब से लेकर आज यहां पर टिका हुआ है। हालांकि यह काफी जर्जर हो चुका है। मरम्मत तो नहीं होती, लेकिन साल में दो बार इसकी पोताई जरूर की जाती है। गांधी मैदान में खेलने वाले बच्चे तो इसे सिर्फ ढांचा ही मानते हैं। क्योंकि स्तंभ के इतिहास के बारे में बताने वाले भी कोई नहीं है।
लालटेन की रोशनी
कवर्धा में पहले कुछ चौक और खंभे थे जिस पर लालटेन जलाया जाता था। शाम होते ही एक व्यक्ति लालटेन को जलाकर खंभे पर चढ़ाता और सुबह होते ही उसे उतार देता था। लालटेन लटकाने वाला एक भी खंभा अब मौजूद नहीं है।
रियासत का दौर
नगर के वरिष्ठ नागरिकों से चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि पहले और अब के समय में बहुत बदलाव आ चुका है। आज के समय में राजनीति हावी हो चुकी है। 75 वर्ष पहले तक रियासत काल चलता था। राजा-महाराजाओं की बात ही कानून हुआ करती थी।
मिडिल स्कूल नहीं
आज के समय में शिक्षा के लिए लोगों को दूर तक सफर तय नहीं करना पड़ता। शिक्षा के क्षेत्र में जिला बेहतर तरक्की कर चुका है। पहले गिनती के ही लोग शिक्षित होते थे। यहां पर मिडिल स्कूल तक नहीं था। प्राथमिक स्कूल वह भी एक-दो। आगे की पढ़ाई के लिए लोगों को रायपुर और राजनांदगांव जाना पड़ता था। आजादी के बाद यह कवर्धा जनपद बना। पहले शहर केवल कचहरी पारा, गुप्ता पारा, ठाकुर पारा तक ही सिमटा हुआ था।
शहर और जंगल
आठ दशक पूर्व सरदार पटेल मैदान से जंगल प्रारंभ हो जाता था। आदर्श नगर जहां पर बसा है वहां पहले हाकी का मैदान था। शहर के बच्चे वहीं जाकर अभ्यास करते थे। बूढ़ा महादेव मंदिर के पीछे महल होने के अवशेष बिखरे हुए थे। रेवाबंध के पास पहले पोस्ट आफिस हुआ करता था। वर्तमान जैन मंदिर के सामने भी महल हुआ करता था। बस स्टैण्ड के पास हैण्डपंप था अधिकतर लोग वहां तक पानी भरने के लिए जाते थे।

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