scriptदिव्यांग भाई को आवास मिले, इसलिए गोद में लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचा | Divyang brother got accommodation so he took reception to collectorate | Patrika News

दिव्यांग भाई को आवास मिले, इसलिए गोद में लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचा

locationकवर्धाPublished: Sep 18, 2017 02:55:47 pm

नों पैर से दिव्यांग राजकुमार ने बताया कि अब तक वह निर्माण में करीब एक लाख रुपए से अधिक की राशि उधार कर चुका है।  

divyang
कवर्धा . रहने के लिए पक्का मकान नहीं, कहीं जाकर काम कर सकू ऐसी ताकत नहीं। मेरे पास केवल शासन की योजनाओं के सिवा कुछ और नहीं। यह कथन है ग्राम पंचायत धनौरा के आश्रित ग्राम भानपुर निवासी राजकुमार का। वह शासन की योजनाओं का लाभ लेने के अपने भाई के कंधे का सहारा लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचा था।
कवर्धा विकासख्ंाड के ग्राम भानपुर निवासी राजकुमार पिता पुल्लू राम चंद्राकर यह दोनों पैर से नि:शक्त है। बिना ट्राइसिकल के वह कहीं जा नहीं सकता है। राजकुमार का नाम प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए सूची में आया था। इसके बाद शासन द्वारा आवास निर्माण के लिए पहला किस्त भी जारी किया गया। यह राशि राजकुमार के जनधन खाते में आया। इसके कारण वह खाते से पैसा नहीं निकाल पा रहा था। सपथ पत्र देने के बाद राशि मिला। इसमें वह आवास निर्माण प्रारंभ कर दिया। घर में पुराना छोटा सा दुकान था। इस दुकान के पैसे को आवास निर्माण में लगा दिया, जिससे आवास चौखट लेबल तक तैयार हो गया। लेकिन करीब तीन माह से आवास निर्माण अधूरा पड़ा हुआ है। क्योंकि शासन द्वारा अब तक दूसरा किस्त जारी नहीं किया गया है। इसके कारण उसे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। राजकुमार अपने छोटे भाई के साथ जिला मुख्यालय मोटर साइकिल में आया। इसके बाद कलेक्ट्रेट कार्यालय तक अपने भाई की पीठ का सहारा लेकर कलक्टर से प्रधानमंत्री आवास की दूसरी किस्त की गुहार लगाई।
कर्ज में डूबा दिव्यांग
दोनों पैर से दिव्यांग राजकुमार ने बताया कि अब तक वह निर्माण में करीब एक लाख रुपए से अधिक की राशि उधार कर चुका है। वह बाजार से छड़, रेत, सीमेंट व अन्य समान उधार में लेकर आवास निर्माण करा रहा है। व्यापारियों को दूसरा किस्त मिलने पर उधार चुकाने की बात हुई थी। लेकिन अब तक दूसरा किस्त नहीं मिलने से काफी परेशानी हो रही है।
चक्कर काटते परेशान दिव्यांग
परेशान दिव्यांग राजकुमार चंद्राकर ने बताया कि उसका खाता पहले जनधन में था। आवास का पहला किस्त इसी खाता में आया। चंूकि जनधन के खाते में 50 हजार से अधिक राशि नहीं ली जाती इसके चलते बैंक प्रबंधन पैसा देने से मना कर दिए। इसके कारण दूसरा खाता खुलवाकर उस खाते में पैसा ट्रांसफर कराया गया। लेकिन अब दूसरी किस्त का इंतजार है। आवास निर्मााण में घर के दुकान व घर में रखे सभी पैसे खर्च हो गए हैं। वहीं जनपद पंचायत से लेकर कलेक्ट्रेट तक खाता नंबर बदलने के लिए चक्कर काटकर थक चुका है।
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