कुआं को बना दिया कचरा पात्र
पहले हर गांव में दर्जनों सार्वजनिक व निजी कुएं रहते थे, जिससे ग्रामीणों की प्यास बुझती थी। समय समय पर कुएं की साफ सफाई का जिम्मा ग्रामीण बखुबी निभाते थे। सुरक्षा के लिहाज से घेराबंदी भी करते थे, लेकिन अब कुओं की उपयोगिता कम होने के कारण ग्रामीणों ने इनकी तरफ देखना तक बंद कर दिया है। कई ग्रामीणों ने तो कुएं को कचरा पात्र बना दिया है। संरक्षण के अभाव में कई कुआं की दीवारों में दरारें तक आ गई है वहीं कई कुएं मलबे से पूरी तरह से दब गए हैं।
पहले हर गांव में दर्जनों सार्वजनिक व निजी कुएं रहते थे, जिससे ग्रामीणों की प्यास बुझती थी। समय समय पर कुएं की साफ सफाई का जिम्मा ग्रामीण बखुबी निभाते थे। सुरक्षा के लिहाज से घेराबंदी भी करते थे, लेकिन अब कुओं की उपयोगिता कम होने के कारण ग्रामीणों ने इनकी तरफ देखना तक बंद कर दिया है। कई ग्रामीणों ने तो कुएं को कचरा पात्र बना दिया है। संरक्षण के अभाव में कई कुआं की दीवारों में दरारें तक आ गई है वहीं कई कुएं मलबे से पूरी तरह से दब गए हैं।
कुएं निर्माण में यह भी रोड़ा
लगातार गिरते भू-जल स्तर भी कुंआ निर्माण के लिए रोड़ा साबित हो रहा है। जबकि मनरेगा के तहत प्रशासनिक स्तर से सिंचाई कूप निर्माण के लिए अब 2.48 लाख रुपए राशि है, जो पिछले साल से राशि बढ़ी है, जिसमें समाग्री के लिए 1.79 लाख रुपए व 69 हजार मजदुरी के लिए है। इसके बाद भी लोगों का यही तर्क है कि भू-जल स्तर गिरने के चलते कुएं खुदाई में पानी आना मुश्किल है। हालांकि बारिश के समय ही कुएं में भरपूर पानी की कयास लगाया जा रहा है।
लगातार गिरते भू-जल स्तर भी कुंआ निर्माण के लिए रोड़ा साबित हो रहा है। जबकि मनरेगा के तहत प्रशासनिक स्तर से सिंचाई कूप निर्माण के लिए अब 2.48 लाख रुपए राशि है, जो पिछले साल से राशि बढ़ी है, जिसमें समाग्री के लिए 1.79 लाख रुपए व 69 हजार मजदुरी के लिए है। इसके बाद भी लोगों का यही तर्क है कि भू-जल स्तर गिरने के चलते कुएं खुदाई में पानी आना मुश्किल है। हालांकि बारिश के समय ही कुएं में भरपूर पानी की कयास लगाया जा रहा है।