पौधरोपण करने के बाद देखभाल नहीं होने से नन्हे पौधे धीरे धीरे मुरझा कर मरने लगे। कुछ बचे पौधे हैं उन्हें गाय, भैंस अपना निवाला बनाकर ठूंड में बदल दिया है। कुछ लोग अपनी भैंस को लेकर रोपित एरिया में चारा चरा रहे हैं, जिसे रोकने वाला कोई नहीं है। वहीं वन विभाग के अधिकारी समय समय पर मानिटरिंग करने के बजाय बंद कमरे में आराम फरमा रहे हैं, जिसके कारण गिनती के पौधे दिखाई दे रहे हैं।
पौधरोपण के नाम पर हर साल लाखों रुपए खर्च के बाद भी योजना के तहत रोपित पौधे के रखरखाव में लापरवाही बरती जा रही है, जिससे रोपित एरिया में लगे पौधे विकसित होने के पहले नष्ट हो जाते हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि योजना के तहत पौधारोपण कर विभाग केवल औपचारिकता निभा रहे हैं। विभाग की फाइल में पौधा बड़ा होकर फुलने फलने लगता है। तभी तो इस तरह की कई जगह रोपित पौधे की हाल ऐसा ही है। ग्राम बंदौरा उनमें से एक है। लापरवाही सामने आती रहती हैं।
दो हेक्टेयर राजस्व भूमि पर वन विभाग ने मनरेगा तहत 800 नग आंमला, नीलगिरी, सीताफल जैसे विभिन्न प्रजाति के पौधे रोपे थे। महज दो बरस के अंतराल बाद अब रोपित एरिया में गिनती के पौधे दिखाई दे रहे हैं। चारों ओर जंगली घास फूस और छोटे छोट पौधे उग आए हैं। आलम यह है कि महज़ दस फीसदी पौधे बमुश्किल से ही दिखाई दे रहा है।