पीले धागे की मांग बढ़ी
हर वर्ष होने वाले इस ग्रंथि पूजन में केवल नगर के ही लोग नहीं, बल्कि दूर दूर से आकर लोग सम्मिलित होते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने और भाग लेने के कारण पूजन सामग्रियों की मांग भी बढ़ जाती है। मंदिर के सामने ही नारियल, अगरबत्ती, जनेऊ, मगज के लड्डू, कपूर, आदि पूजन सामग्रियों की दुकानें सजी हुई है।
हर वर्ष होने वाले इस ग्रंथि पूजन में केवल नगर के ही लोग नहीं, बल्कि दूर दूर से आकर लोग सम्मिलित होते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने और भाग लेने के कारण पूजन सामग्रियों की मांग भी बढ़ जाती है। मंदिर के सामने ही नारियल, अगरबत्ती, जनेऊ, मगज के लड्डू, कपूर, आदि पूजन सामग्रियों की दुकानें सजी हुई है।
मालपुआ का लगा भोग
हनुमान जी को सर्वाधिक प्रिय रोंठ-नारियल और माल-पुआ का भोग भक्तों ने चढ़ाया और उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास किया। मंदिर परिवार की ओर से भी मालपुआ बनाकर प्रसाद वितरण किया गया। इसके अतिरिक्त मंदिर के सामने भी पूजन सामग्रियों की दुकानों में मगज के लड्डू आज खूब बिके। एक अनुमान के अनुसार लगभग एक क्विंटल लड्डू भक्तों ने हनुमान जी को समर्पित किया। राम और युधिष्ठिर ने सबसे पहले गं्रथी पूजा किया था। आध्यात्मिक पूजा अर्चना और भावनाओं और विश्वास पर टिका हुआ है। पुराणों के अनुसार इस पूजा से ही भगवान राम और महाभारत काल में राजा युधिष्ठिर की भी दु:खों का अंत हुआ था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है।
हनुमान जी को सर्वाधिक प्रिय रोंठ-नारियल और माल-पुआ का भोग भक्तों ने चढ़ाया और उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास किया। मंदिर परिवार की ओर से भी मालपुआ बनाकर प्रसाद वितरण किया गया। इसके अतिरिक्त मंदिर के सामने भी पूजन सामग्रियों की दुकानों में मगज के लड्डू आज खूब बिके। एक अनुमान के अनुसार लगभग एक क्विंटल लड्डू भक्तों ने हनुमान जी को समर्पित किया। राम और युधिष्ठिर ने सबसे पहले गं्रथी पूजा किया था। आध्यात्मिक पूजा अर्चना और भावनाओं और विश्वास पर टिका हुआ है। पुराणों के अनुसार इस पूजा से ही भगवान राम और महाभारत काल में राजा युधिष्ठिर की भी दु:खों का अंत हुआ था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है।