छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार बड़ी दिवाली के दूसरे दिन भगवान शिव की बारात निकाली जाती है, इसके लिए भगवान शिव और माता पार्वती को सजाया जाता है। बुधवार की रात जहां एक ओर लोग दीवाली मनाकर सो गए, वहीं दूसरी ओर गौरा-गौरी की तैयारी में लगे लोग रात भर जागते रहे। गुरुवार को नगर सहित ग्रामीण अंचलों में गौरा-गौरी पर्व की धूम रही। इसे भगवान शंकर व पार्वती की विवाह के रूप में मनाया जाता है। ग्राम गोपालभवना में शिवजी के बारात में पूरा गांव उमड़ पड़े। महिलाओं के साथ पुरुष व बच्चों ने नाचते गाते हुए बारात में शामिल हुए। धनतेरस को देवस्थल पर हूम-धूप देकर पर्व की शुरुआत की गई। बुधवार को मिट्टी लाया गया और रात में ही भगवान शिव(गौरा) व पार्वती(गौरी) की प्रतिमा बनाई गई। माता पार्वती की डोली बनाकर सजाया गया। दीपावली के दूसरे दिन सुबह से ही लोगों की अच्छी खासी भीड़ देव स्थल पर रही। दोपहर को बाजे-गाजे के साथ ही भगवान शिव की बारात निकाली गई। शादी के बाद भगवान शिव, पार्वती को ले जाने के लिए निकले। नगर भ्रमण के पश्चात शिवजी और पार्वती को नदी, तालाब में विसर्जित किया गया।
दीपावली में महंगाई ने भले ही लोगों का दिवाला निकाल दिया हो, लेकिन पटाखा व्यापारियों के लिए फायदेमंद रहा। इस बार 80 फीसदी से अधिक पटाखों की बिक्री हुई। इससे पटाखा बाजार ने लगभग 70 लाख रुपए से अधिक का कारोबार किया। इस वर्ष किसानों के सोयाबीन फसल बर्बाद होने के बाद भी ग्राहकी में ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। इसका मुख्य कारण धान बोनस का दिवाली के पहले मिलना है। पटाखा बाजार ने केवल चार दिन में ही लगभग 70 लाख रुपए का कारोबार किया। पिछले वर्ष 54 दुकानें थी, जिससे 55 लाख रुपए का कारोबार हुआ था। इससे शहर में उत्साह देखा गया।
दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की गई। लोग घरों के गौशाला और गौठन में गोबर से आकृति बनाकर पूजा-अर्चना किए। इस दिन घरों में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पकवान भी बनाए गए, जिसे गाय और मवेशियों को खिलाया गया। गोवर्धन पूजा के साथ ही यदुवंशियों का लोक उत्सव मातर मड़ई प्रारंभ हो जाता है। गांव में मातर मड़ई का आयोजन होगा।