Read More News: यहां एक वोट से बदली बीजेपी की किश्मत, जीत सुनकर महिला कार्यकर्ताओं के चेहरे खिल उठे यह तस्वीर वनांचल की नहीं बल्कि मैदानी इलाके के गांव का है। जहां लोग आज के युग में भी आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग तो कर रहे हैं, लेकिन आज भी लोग अनाज के मिंजाई के बाद रासदाब की पारंपरिक परम्परा कर अनाज घर लाया है। आज भी लोग धान की मिंजाई के बाद कोठार (ब्यारा) में अनाज को इक_ा कर गोलाकर करते हैं। पारंपरिक यंत्र के रूप में कलारी से इक_ा अनाज में तीन बार घेरे करते हैं। साथ ही गेंदा के फूल को रासदाब में सजाया जाता है। बेर व मोखला के कांटे रख कर सुपा व तांबा के लोटे व नरियल फल व गुड़ से आचमन व हुम-धूप करने के बाद आनाज को घर ले जाते हैं।
इस तरह के रीत को पुरानी छत्तीसगढ़ी परम्परा मान कर लोग इस माध्यम को आज भी संजोयकर रखा है। छत्तीसगढ़ में लम्बे समय से यह रीति चली आ रही है। हालांकि आधुनिकता के चकाचौंध में इस तरह की परंपरा बहुत कम ही देखने को मिलती है, लेकिन ग्रामीण अंचल के कुछ लोग ही इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है। हमारे बड़े बुजुर्ग बताते है कि धान की मिंजाई के बाद रासदाब की परंपरा सभी लोग करते थे, लेकिन अब समय के साथ सब कुछ बदल रहा है। कोठार में अनाज इक_ा कर रासदाब बनाया जाता था, लेकिन अब आधुनिकता के साथ यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है।