देवी मंदिरों में आज भी कलश पर ज्योति प्रज्ज्वलन चकमक पत्थर के जरिए ही किया जाता है। यह सदियों से चली आ रही विधि है, जिसका पालन सभी मंदिरों में किया जाता है। नगर के सिद्धपीठ मां विंध्यवासिनी मंदिर में सुबह ११ बजकर ३५ मिनट पर मनोकामना कलश पर विधि विधान से ज्योति प्रज्ज्वलन की प्रक्रिया शुरू की गई। इस दौरान केवल पंडा व मंदिर समिति के सदस्य मौजूद रहे, जो धोती पहने रहे। सबसे पहले चकमक पत्थर से रूई के सहारे चिंगारी बनाई गई। चिंगारी बनते ही रूई पर कपूर लगाकर कांशी(घास) से लपेट कर हवा में घुमाया गया, जिससे चिंगारी आग में परिवर्तित हो गई। कांशी जलने लगा, इससे थोड़ी से आग लेकर मंदिर के प्रमुख माई कलश पर ज्योति प्रज्ज्वलित किया। इसके बाद बारी-बारी बाकी कलश में ज्योति प्रज्ज्वलित किया गया।