scriptनगर के देवी मंदिरों में जगमगाने लगी मनोकामना ज्योति कलश | Manashakumna Jyoti Kalash, which is flamboyant in the Goddess temples | Patrika News

नगर के देवी मंदिरों में जगमगाने लगी मनोकामना ज्योति कलश

locationकवर्धाPublished: Apr 07, 2019 11:38:29 am

Submitted by:

Panch Chandravanshi

शनिवार को देवी मंदिरों में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ देवी आह्वान, घट स्थापना और पूजन किया गया। घट स्थापना और देवी के लिए प्रथम ज्योति जिसे माई ज्योति कहते हैं, जिसे श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त पर प्रज्ज्वलित किया गया।

Manokamna Jyoti Kalash

Manokamna Jyoti Kalash

कवर्धा. नवरात्रि के चलते सुबह की शुरूआत शंखनाद और घंटियों की आवाज से हुई। शनिवार से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो चुकी है। कवर्धा शहर के सिद्धपीठ देवी मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त पर ज्योति प्रज्जवलित किए गए। मंदिरों में आज भी प्राकृतिक रूप से आग जलाकर ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है।
शनिवार को देवी मंदिरों में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ देवी आह्वान, घट स्थापना और पूजन किया गया। घट स्थापना और देवी के लिए प्रथम ज्योति जिसे माई ज्योति कहते हैं, जिसे श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त पर प्रज्ज्वलित किया गया। नगर के सिद्धपीठ देवी मंदिरों में साल दर साल मनोकामना ज्योति कलश की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जिले के साथ-साथ अन्य जिले व दूसरे राज्य के श्रद्धालु भी मनोकामना के लिए नगर के सिद्धपीठ देवी मंदिरों में ज्योति प्रज्ज्वलित कराएं हैं। सबसे अधिक मां विंध्यवासिनी मंदिर में ४०९१ ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए गए हैं। इसी तरह मां महामाया मंदिर में ११५१, मां काली मंदिर में ११७१, मां चंडी मंदिर में १४०, मां शीतला मंदिर में ४७७ और मां दुर्गा-संतोषी मंदिर में १५९, मां सतबहिनीया मंदिर २०७, मां परमेश्वरी में १०१ ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए गए हैं।
आज भी चकमक पत्थर से ज्योति प्रज्ज्वलित
देवी मंदिरों में आज भी कलश पर ज्योति प्रज्ज्वलन चकमक पत्थर के जरिए ही किया जाता है। यह सदियों से चली आ रही विधि है, जिसका पालन सभी मंदिरों में किया जाता है। नगर के सिद्धपीठ मां विंध्यवासिनी मंदिर में सुबह ११ बजकर ३५ मिनट पर मनोकामना कलश पर विधि विधान से ज्योति प्रज्ज्वलन की प्रक्रिया शुरू की गई। इस दौरान केवल पंडा व मंदिर समिति के सदस्य मौजूद रहे, जो धोती पहने रहे। सबसे पहले चकमक पत्थर से रूई के सहारे चिंगारी बनाई गई। चिंगारी बनते ही रूई पर कपूर लगाकर कांशी(घास) से लपेट कर हवा में घुमाया गया, जिससे चिंगारी आग में परिवर्तित हो गई। कांशी जलने लगा, इससे थोड़ी से आग लेकर मंदिर के प्रमुख माई कलश पर ज्योति प्रज्ज्वलित किया। इसके बाद बारी-बारी बाकी कलश में ज्योति प्रज्ज्वलित किया गया।
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