भले ही योजना के तहत शासन प्रशासन मुक्तिधाम शेड निर्माण करा कर ग्रामीणों को सुविधा पहुंचाने की बात करते हैं, लेकिन अमलीडीह में दाह संस्कार करने के लिए बरसात के मौसम में लकड़ी, छेना को बचाने के लिए तिरपाल व छतरी का सहारा लेना पड़ता है। यह सिलसिला बहुत लंबे समय से बरसात के दिनों में देखने को मिलता है। वर्तमान में मुक्तिधाम चबूतरा नहीं होने के कारण लोग आज भी पुराने ढर्रे से जमीन में दाह संस्कार की रस्म निभाते हैं। वहीं अंतिम यात्रा में शामिल लोगों के बैठने के लिए व पेयजल की व्यवस्था भी नहीं है। वहीं जिम्मेदार लोग इस समस्या की ओर मुंह फेर कर बैठे हैं, तभी तो इस गांव को मुक्तिधाम की सुविधा नहीं मिल पाई है।
गर्मी के दिनों में दाह संस्कार जैसे-तैसे निकल जाती है, लेकिन बरसात में परेशानी बढ़ जाती है। दरअसल अंतिम यात्रा में शामिल होने गांव सहित दूरदराज के सगे संबंधी लोगों का मुक्तिधाम में बारिश का सामना करना पड़ता है। वहीं दाह संस्कार में परिजनों को फजीहत झेलना पड़ता है। उपेक्षा का दंश झेल रहे अमलीडीह ग्राम के रहवासियों ने बताया कि बरसात में दाह संस्कार पूरी करने के लिए लकड़ी गिली न हो इसलिए तिरपाल आदि का सहारा लेना पड़ता है। ताकि दाह संस्कार में रुकावटें न हो। आज तक मुक्तिधाम का सौगात ग्रामीणों को नहीं मिल पाया है।