scriptमुक्तिधाम में शेड नहीं, खुले में करना पड़ता है दाह संस्कार | Muktidham does not have shed, it is done in the open cremation | Patrika News

मुक्तिधाम में शेड नहीं, खुले में करना पड़ता है दाह संस्कार

locationकवर्धाPublished: Feb 20, 2019 11:37:28 am

Submitted by:

Panch Chandravanshi

ग्रामीण को आज पर्यंत तक मुक्तिधाम शेड नहीं मिलने से आज भी पुराने ढर्रे से अंतिम संस्कार की रस्म अदा करने मजबूर हैं। बरसात के दिनों में अगर किसी ग्रामीण का निधन हो जाए तो परिजनों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

Cremation in the open

Cremation in the open

इंदौरी. बारिश के दिनों में दाह संस्कार में रुकावटें न हो इस उद्देश्य से शासन द्वारा पंचायत स्तर पर गांव गांव में मुक्तिधाम शेड का निर्माण पिछले कई वर्षों से करा रहे हैं। इसके निर्माण से लोगों को सहुलियत मिली है, लेकिन कई गांव में इसका लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा है। इसका जीवंत नमूना अमलीडीह है। इसका मुख्य कारण आज पर्यंत मुक्तिधाम चबूतरा का निर्माण न होना है।
सहसपुर लोहारा विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत बंधी के आश्रित ग्राम अमलीडीह की बसाहट है, जिसकी जनसंख्या लगभग 300 के करीब है। ग्रामीणों के मुख्य व्यवसाय खेती किसानी है। यहां लोग आपसी सहयोग के लिए हर संभव मदद करने आगे आने में देर नहीं लगती है। गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव तो हैं। ग्रामीण को आज पर्यंत तक मुक्तिधाम शेड नहीं मिलने से आज भी पुराने ढर्रे से अंतिम संस्कार की रस्म अदा करने मजबूर हैं। बरसात के दिनों में अगर किसी ग्रामीण का निधन हो जाए तो परिजनों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक तो परिजन शोक में डूबे होते हैं। वहीं दूसरी ओर बरसात के दिनों में अंतिम यात्रा निकलने के बाद दाह संस्कार रस्म अदा करने के लिए मुसीबत उठाना पड़ता है। बारिश में सबसे अधिक परेशानी होती है।
नहीं है मुक्तिधाम शेड
भले ही योजना के तहत शासन प्रशासन मुक्तिधाम शेड निर्माण करा कर ग्रामीणों को सुविधा पहुंचाने की बात करते हैं, लेकिन अमलीडीह में दाह संस्कार करने के लिए बरसात के मौसम में लकड़ी, छेना को बचाने के लिए तिरपाल व छतरी का सहारा लेना पड़ता है। यह सिलसिला बहुत लंबे समय से बरसात के दिनों में देखने को मिलता है। वर्तमान में मुक्तिधाम चबूतरा नहीं होने के कारण लोग आज भी पुराने ढर्रे से जमीन में दाह संस्कार की रस्म निभाते हैं। वहीं अंतिम यात्रा में शामिल लोगों के बैठने के लिए व पेयजल की व्यवस्था भी नहीं है। वहीं जिम्मेदार लोग इस समस्या की ओर मुंह फेर कर बैठे हैं, तभी तो इस गांव को मुक्तिधाम की सुविधा नहीं मिल पाई है।
बारिश में बढ़ जाती है परेशानी
गर्मी के दिनों में दाह संस्कार जैसे-तैसे निकल जाती है, लेकिन बरसात में परेशानी बढ़ जाती है। दरअसल अंतिम यात्रा में शामिल होने गांव सहित दूरदराज के सगे संबंधी लोगों का मुक्तिधाम में बारिश का सामना करना पड़ता है। वहीं दाह संस्कार में परिजनों को फजीहत झेलना पड़ता है। उपेक्षा का दंश झेल रहे अमलीडीह ग्राम के रहवासियों ने बताया कि बरसात में दाह संस्कार पूरी करने के लिए लकड़ी गिली न हो इसलिए तिरपाल आदि का सहारा लेना पड़ता है। ताकि दाह संस्कार में रुकावटें न हो। आज तक मुक्तिधाम का सौगात ग्रामीणों को नहीं मिल पाया है।
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