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अब बगैर रसायनिक कीटनाशक ही कीट पर नियंत्रण संभव

locationकवर्धाPublished: Sep 01, 2018 12:18:37 pm

Submitted by:

Yashwant Jhariya

कई वर्षों के शोध के बाद कृषि वैज्ञानिकों को पायरिल्ला कीट पर नियंत्रण पाने में कामयाबी मिली

kawardha

अब बगैर रसायनिक कीटनाशक ही कीट पर नियंत्रण संभव

कवर्धा . कबीरधाम जिले में गन्ने की खेती एक नगद फसल के रूप में की जाती हैं। प्रतिवर्ष गन्ना फसल के रकबे में वृद्धि आंकी जा रही है, लेकिन इसमें पाईरल्लिा नामक कीट की वजह से किसान परेशान रहते। कई वर्षों के शोध के बाद कृषि वैज्ञानिकों ने इस पर नियंत्रण पाने में अब कामयाब हो चुके हैं।
कबीरधाम जिले के पंडरिया, बोड़ला कवर्धा और सहसपुर लोहारा विकासखण्ड में प्रमुखत: गन्ना फसल की खेती की जाती हैं, लेकिन किसान हमेशा ही कीट से परेशान रहते, क्योंकि पाईरिल्ला गन्नों को नुकसान पहुंचाता। इस पर संत कबीर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र के कीट वैज्ञानिक डॉ. व्हीके सोनी अपनी टीम के साथ अनुसंधान करने लगे। तीन साल के सतत् प्रयास से इस पर अब कामयाबी मिलने लगी है। वर्ष 2014 में पायरिल्ला कीट के जैविक नियंत्रण के लिए मित्र कीट ‘इप्रिकेनिया मिलेनोल्यूकाÓ को गन्ने के खेतों में छोड़ा। आज यह परजीवी कीट पाईरिल्ला कीट को पूरी तरह से खत्म कर रहे हैं।
पायरिल्ला कीट गन्नों को पहुंचाता है नुकसान
पायरिल्ला कीट गन्ने की पत्तियों के निचली सतह पर पाया जाता है, जो पत्तियों का रस चूसकर फसल को प्रभावित करता है। इस कीट द्वारा रस चूसने के कारण पत्तियां पीली हो जाती है। साथ ही यह कीट एक प्रकार का चिपचिपा मधु रस का स्राव भी करता है जिसके कारण पत्तियां काली हो जाती है।
ऐसा करता है काम ‘इप्रिकेनिया
मित्र कीट इप्रिकेनिया की इल्ली अवस्था 10-12 दिनों मे पूर्ण होने के पश्चात् इल्ली पायरिल्ला कीट को छोड़कर गन्ना की पत्तियों की सतह पर अण्डे के आकार की शंखी (प्यूपा) का निर्माण कर उसके अंदर रहते हैं। 4-11 दिनों में शंखी अवस्था पूर्ण होने के पश्चात् काले रंग का इप्रिकेनिया मिलेनोल्यूका कीट का वयस्क बाहर आता है। शंखी के पास ही मादा कीट हल्के भूरे स्लेटी रंग के गुच्छों में अण्डे देती है। अनुकूल वातावरण की स्थिति में 9 दिनों पश्चात् इन अण्डों से पुन: इल्लीयों का निर्माण होता हैं और यह मित्र कीट अपना नया जीवन चक्र पूर्ण करते हैं। अण्डों से तुरंत निकली इल्लियां पायरिल्ला कीट के सिर व पैर पर स्थापित होकर अपना भोजन ग्रहण करती हैं। इस प्रकार इप्रिकेनिया मित्र कीट द्वारा पायरिल्ला कीट का नियंत्रण गन्ने की फसल में बगैर रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से संभव है।
इन गांवों का किया निरीक्षण
विकासखण्ड बोड़ला के ग्राम राम्हेपुर, सिंधनपुरी, सूरजपूरा, कुसुमघटा व आस-पास के अन्य ग्रामों जहां गन्ना की खेती हो रही है वहां मित्र कीट सफलतापूर्वक स्थापित होकर पारिल्ला कीट के शिशु व वयस्क कीट को नियंत्रित करने में स्वत: कार्यरत है। इप्रिकेनिया की पहचान गन्ने की पत्तियों में सफेद रंग की शंखी से कर सकते है। साथ ही शंखी के पास ही गुच्छों में इस मित्र कीट के हल्के भूरे स्लेटी रंग के अंडों के गुच्छे भी पाए जा रहे हैं। किसनों को गन्ना नहीं जलना चाहिए, क्यांकि परजीवी मित्र कीट पत्तों में मौजूद रहते हैं।
मित्र कीट की पहचान
मित्र कीट इप्रिकेनिया मिलेनोल्यूका बाह्य परजीवी है जिसे दूसरे प्रदेशों से मंगाकर किसानों के प्रक्ष्ेात्र व महाविद्यालय के अनुसंधान प्रक्षेत्र में समय-समय पर गन्ना की फसल पर छोड़ रहे हैं। क्षेत्रों में सर्वेक्षण द्वारा पता चला कि इप्रिकेनिया के औसतन 3-8 शंखी व 200-300 अण्डे प्रति पत्ती वर्तमान में उपरोक्त ग्राम में गन्ने की फसल पर आसानी से देखा जा सकता है। इप्रिकेनिया मिलेनोल्यूका एक शल्क कीट है जो कि एपिपायरोपिडी परिवार का सदस्य है। यह गन्ने के पायरिल्ला कीट का प्रमुख बाह्य परजीवी हैं जो कि पायरिल्ला के शिशु (निम्फ) व वयस्क (एड्ल्ट) कीट को प्रमुख रूप से अपना भोजन बनाता है। इससे पाईल्लिा की संख्या में कमी आने लगी है।
कृषि अनुसंधान केंद्र कवर्धा के कीट वैज्ञानिक व्हीके सोनी ने बताया कि पाईरिल्ला गन्नों में महामारी की है। इसके लिए हमने लगातार काम किए, ताकि किसानों को इनसे छुटकारा मिले। परजीवी को पाइरिल्ला के लिए छोड़ा गया। वह पाईरिल्ला का अपना भोजन बनाते। उन्हें कमजोर कर देते हैं ताकि वह प्रजनन न कर सके। अब इस नतीजा क्षेत्र में दिखाई देने लगा है।
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