कवर्धा

मनरेगा मजदूरों के तीन करोड़ से अधिक का भुगतान अटका

मनरेगा के तहत कार्य करने वाले सैकड़ों मजदूरों के 3 करोड़ 14 लाख 20 हजार रुपए का भुगतान पिछले दो माह से अटका हुआ है। भुगतान नहीं होने के कारण मजदूर राशि पाने के लिए भटक रहे हैं।

कवर्धाJan 31, 2020 / 11:32 am

Panch Chandravanshi

मनरेगा मजदूरों के तीन करोड़ से अधिक का भुगतान अटका

कवर्धा . महात्मा गांधी रोजगार गारंटी के तहत मजदूरों को 150 दिन काम और 15 दिन के भीतर भुगतान की योजना कबीरधाम जिले में धूल चाट रही है। यहां मजदूरों को काम तो मिल रहा है, लेकिन भुगतान के लिए भटकना पड़ रहा है। हालात इतने बुरे हैं कि काम के बाद भी सैकड़ों मजदूरों के हाथ खाली हैं। बावजूद इसके जिला प्रशासन जरा भी गंभीर नहीं है।
जिले के विभिन्न गांवों में मनरेगा के तहत कार्य करने वाले सैकड़ों मजदूरों के 3 करोड़ 14 लाख 20 हजार रुपए का भुगतान पिछले दो माह से अटका हुआ है। भुगतान नहीं होने के कारण मजदूर राशि पाने के लिए भटक रहे हैं। जिले के अलग-अलग गांवों से मजदूर कभी जिला पंचायत तो कभी जनपद पंचायत रोजाना ही भुगतान की मांग को लेकर पहुंच रहे हैं। आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन मनरेगा मजदूरों को जिला कार्यालय के बाहर चक्कर काटते आसानी से देखा जा सकता है। मनरेगा मजदूरों का सबसे अधिक एक करोड़ ४१ लाख रुपए बोड़ला ब्लाक में पेंडिंग है। वहीं पंडरिया ब्लाक में 88.68 लाख रुपए का भुगतान अटका हुआ है। कवर्धा ब्लाक अंतर्गत 46 लाख 73 हजार रुपए तो सहसपुर लोहारा ब्लाक अंतर्गत 37 लाख 72 हजार रुपए का भुगतान किया जाना है। पिछले दो महीने से मनरेगा मजदूर भुगतान की मांग को लेकर जनपद पंचायत के चक्कर काट रहे हैं। बावजूद इसके मजदूरों को भुगतान के बजाय कोरा आश्वासन ही मिल रहा है। मजदूरों की मानें तो उन्होंने पंचायत में सड़क मिट्टीकरण, स्टॉप डेम गहरीकरण और तालाब गहरीकरण का काम किया। भुगतान को लेकर जब वे पंचायत प्रतिनिधियों के पास गए, तो राशि नहीं आने की बात कहकर बैरंग लौटा दिया जाता है।
दो माह से भुगतान लंबित
जिले के विभिन्न गांवों में मनरेगा मजदूरों का भुगतान अटका हुआ है। मजदूरों का कहना है कि एक तो कम रोजी में मनरेगा में काम किए अब भुगतान के लिए कार्योलयों का चक्कर काटना पड़ रहा है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के चलते हितग्राही सरपंच, सचिव से जानकारी लेने के बजाए सीधे जनपद कार्यालय पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां भी उन्हे निराशा ही हाथ आई। आर्थिक तंगी का आलम ऐसा है कि कई मजदूर काम-धाम छोड़ रोजाना ही बैंक, पोस्ट ऑफिस और पंचायत के चक्कर लगा रहे हैं।
काम तो मिला पर भुगतान नहीं
ग्राम पंचायतों में मनरेगा अंतर्गत मजदूरों को काम तो मिला, लेकिन काम खत्म होने के बाद समय पर भुगतान नहीं होने से मजदूरों का मनरेगा के प्रति धीरे-धीरे मोहभंग होते जा रहा है। गांव से जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए किराए भाड़े तो देना ही होता है। इससे आर्थिक बोझ और भी बढ़ रहा चुका है। यदि प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता होती, तो शायद भुगतान नहीं पाने वाले मजदूरों के वास्तविक आंकड़े स्पष्ट तौर पर सामने होते। ऐसे मजदूरों को दीवाली मनाने के लिए मजबूरन सेठ-साहूकारों से कर्ज लेना पड़ रहा है।

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